ऑफ़िस-ऑफ़िस

सोनाली सिंह

कई बार किसी अजनबी से पहली ही मुलाक़ात में ऐसा महसूस होता है कि उससे कोई पुराना रिश्ता है। ऐसे में उसके प्रति व्यावहारिक नजरिए में भी अपनापन सा आ जाता है। यहां यह जरूरी नहीं कि सामने वाला भी उसी तरह के रिश्ते का अनुभव कर रहा हो। जाहिर है, तब उसके भीतर वैचारिक अंतर्द्वद्व चलना लाजिमी है। पढ़िए, ऐसे ही कश्मकश में उलझी कहानी...
‘टिमटिमाते ऩक्श धुंधले रास्ते
दश्ते-तन्हाई में यादों का गुबार
क्या यही है हसरते दिन का मुआल
क्या इसी सूरत में कटेंगे माहोसाल’


रंधावा एंड रंधावा एसोसिएट्स बोर्ड के सामने खड़े होकर मैं मुस्करा रही थी। जब से इंटीरियर डिजाइनिंग के क्षेत्र में क़दम रखा था, तब से इस कंपनी का हिस्सा बनना चाहती थी। जहां किसी न्यूकमर को एंट्री मिलना उसके सुनहरे भविष्य का संकेत कर देता था। आज मेरा वर्षो पुराना ख्वाब हक़ीक़त में बदल चुका था। मैं सुनील रंधावा, जिनके फादर द ग्रेट ने हफ़ीज कॉन्ट्रेक्टर को ट्रेंड किया था, को अपने प्रोजेक्ट के फोटोग्राफ्स दिखा रही थी।

कंप्यूटर स्क्रीन पर देखते हुए वे मुस्कराए जा रहे थे। उसी लय में उनकी उंगलियां माउस पर थिरक रही थीं। उनकी मुस्कराहट देख कर मैंने अपनी हड़बड़ाहट पर बख़ूबी काबू पा लिया था।

‘डू यू नो, जिस मॉल में तुमने यह रेस्ट्रां डिजाइन किया है। यह मॉल किसका प्रोजेक्ट था?’

मेरी आंखों की पुतलियां एक कोने से दूसरे कोने तक घूमीं।
‘मेरा.. ये छोटे-मोटे प्रोजेक्ट्स तो हम करते ही नहीं। हमने इस रेस्ट्रां की भी प्लानिंग करके छोड़ दिया था, जिसे तुम्हारे बॉस ने पिक कर लिया।’
‘..मेरा वहां जाना सार्थक हो गया था। यही वह ऑफ़िस हो सकता था, जहां हफ़ीज कॉन्ट्रेक्टर ने ड्रॉफ्टिंग सीखी थी।’
‘आइ नो श्वेतासी। यू आर अ वेरी नाइस गर्ल एंड क्रिएटिव टू। यू विल बी इन्फॉम्र्ड सून।’

दिल ठंडक से भर गया। अभी तक अपने लिए ब्यूटीफुल, क्यूट और स्वीट जैसी उपमाएं सुन-सुन कर आजिज आ चुकी थी। मुझे हमेशा से अच्छा लगता आया था कि लोग मेरे बिहेवियर और एटीट्यूड की तारीफ़ करें।
‘हूं.. कितना समझते हैं मुझे।’ एक अपनेपन की लौ जगमगा उठी।

******
तक़रीबन एक ह़फ्ता बेक़रारी से काटने के बाद फ़ोन बजा, ‘मिस श्वेतासी, मिस्टर रंधावा वांट्स टु टॉक यू।’
रिशेप्सनिस्ट ने कॉल फार्वर्ड कर दी।
‘हैलो!’‘गुड ईवनिंग सर!’
‘श्वेतासी, कैन यू कम एट ऑफ़िस राइट नाउ?’
‘सर, इट्स ऑलरेडी सेवन ओ क्लॉक, आइ विल नॉट अलाउड टू गो आउट। हॉस्टल बहुत स्ट्रिक्ट है।’
‘अगर कोई काम हो, तो भी नहीं निकलने देते?’ लहजे में तीखापन था।

मैं लगातार न आ पाने की दलीलें पेश कर रही थी। इत्मीनान से बात करना मेरे बस के बाहर होता जा रहा था। ख़ैर, दूसरे दिन लंच टाइम का एपॉइंटमेंट फिक्स हो गया था।

‘यू नो आइ..’ उन्होंने ठंडे पानी का गिलास उठा लिया। ‘आइ माइसेल्फ कॉल्ड यू एंड यू डिनाइड टु कम’, टोन से साफ़ जाहिर था कि ऐसी हिमाक़त करने वाली मैं पहली श़ख्स थी, ‘सर, मैंने बताया था न हॉस्टल.. ’, मैं मिमियाई।
‘आइ जस्ट वांट टु डिस्कस ए प्रोजेक्ट विद यू। तुम आजकल के बच्चों के दिमाग़ में ईश्वर जाने क्या फ़ितूर भरा रहता है।’

उस दिन मैं इतनी शर्मिदा थी कि बार-बार बेतवा में डूब जाने को जी चाह रहा था। न जाने क्यों बेतवा की मोहब्बत पीछा नहीं छोड़ती, जबकि यमुना बिल्कुल क़रीब बह रही थी। फादर आर्किटेक्ट, वाइफ़ आर्किटेक्ट.. ख़ानदानी पेशा हो गया। जब कभी उनका छोटा सा बेटा ऑफ़िस आता था। स्टूल चेयर पर पैर लटकाकर ड्राइंग बनाता रहता था। होनहार बिरवान के होत चीकने पात- यह भी आर्किटेक्ट बनेगा।

सबके अलग-अलग केबिन थे, पर आजकल मिसेस आर्किटेक्ट बॉस के केबिन में बैठी हुई नजर आती थीं।

‘कितना प्यार है दोनों में? एक पल के लिए भी एक-दूसरे को नजरों से ओझल नहीं होने देते।’
‘पता चला जब किसी नई लड़की की ऑफ़िस में एंट्री होती है, तब कुछ ऐसा ही नजारा होता है।’
‘सर इतने अच्छे हैं फिर भी इतना शक करती है?’
‘एक पत्नी ही अपने पति को सबसे ज्यादा समझती है।’
मेरी आंखों में उपजे संदेह भाव ने सीनियर को हिला दिया।

‘मैं नहीं कह रही, एक किताब में पढ़ा था’, वह साफ़ मुकर गई।
एक दिन सर ने सारे न्यूकमर्स को बुलाकर प्रोजेक्ट दिया। एक तरफ़ सारे सीनियर्स अक्टूबर के ख़ुशगवार मौसम में एसी चलते भी पसीना टपकाते, दूसरी तरफ़ सारे न्यूकमर्स रिपोर्ट कम तैयार करते, गॉसिप मारते हुए खिलखिलाते ज्यादा।
‘बस इन्ही लोगों के मजे हैं। देखो, क्या मटरगश्ती चल रही है।’

‘सर इन लोगों को हमारे बराबर भाव जो नहीं देते।’
दोनों तरफ़ से तीरंदाजी बराबर चलती रहती थी। ज्यों-ज्यों रिपोर्ट जमा करने की तारीख़ नजदीक आ रही थी, सबकी व्यस्तताएं बढ़ती जा रही थीं और मेरी शिथिलता।
बेस्ट रिपोर्ट वाले ख़ुशक़िस्मत को एक पूरे का पूरा प्रोजेक्ट अकेले हैंडिल करने का इनाम था। सभी जी-जान से लगे हुए थे।

‘क्या उनके लिए सब बराबर हैं?’
मेरी उंगलियां जवाब दे चुकी थीं।
सबने रिपोर्ट जमा कर दी थी। लंच टाइम में उछल-कूद चल रही थी। बस, मैं अपनी टेबल पर सिर झुकाए बैठी हुई थी।
‘श्वेतासी.. श्वेतासी..’, लंच रूम में जाते हुए सर ने आवाज दी।

‘यस सर!’ मैं जैसे सपने से जागी।
‘व्हाट हैपंड?’
‘नथिंग.. नथिंग सर!’
‘लंच टाइम है, लंच नहीं करना तुम्हें?’
‘आज तो फास्ट भी नहीं है। आर यू ऑलराइट?’
‘यस सर, आइ एम फाइन!’
लंच से लौटकर आने पर उनका बुलावा आ गया।
‘आपने बुलाया सर?’ मैं सिर झुकाए खड़ी हुई थी।

‘व्हाइ आर यू शोइंग एब्नॉर्मल रिएक्शन? अब भाई! लंच नहीं करना, तो एब्नॉर्मल रिएक्शन में ही आता है।’
..एक मिनट के लिए लगा कि मैं रो पड़ूंगी। बड़ी मुश्किल से रुलाई जज्ब की।
‘सबने रिपोर्ट जमा कर दी, तुमने क्यों नहीं की? सिर्फ़ तुम्हारे लिए मैंने वह रिपोर्ट बनाने को दी थी.. एंड यू मिस्ड द चांस! व्हाय श्वेतासी व्हाय?’
मैं बस पैर के अंगूठे से कालीन कुरेदे जा रही थी। इतने में सारे न्यूकमर्स का जमावड़ा लग गया रिजल्ट जानने के लिए।

‘आजकल बहुत बिजी हूं, देखने का टाइम ही नहीं मिला।’
‘वह तो ख़त का मजमून लिफ़ाफ़ा देखकर जान लेने वालों में से है। हमारी रिपोर्ट चैक करने में व़क्त ही कितना लगता?’ सबके मुंह लटके हुए थे। ‘क्यों, क्या हुआ?’ पहली बार सीनियर्स के साथ में उनकी शातिर मुस्कराहटों में इजाफ़ा कर रही थी। ‘सारी मेहनत बेकार हो गई।’

माहौल में ख़ामोशी थी और मेरे ठहाके ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। दिन-रात क्लाइंट्स के साथ माथा-पच्ची, कॉन्ट्रेक्टर के दुखड़े, बिल्डर्स की मुसीबतें और एंप्लॉइज की समस्याओं का निदान करते, फिर न्यूकमर की लंबी क़तार, डांट खाकर इल्म हासिल करने के लिए बेसब्री से अपनी बारी का इंतजार करती। इतने पर भी वे हमेशा मेरे लिए व़क्त निकाल लिया करते थे। जब मुझसे बात करते, तो सिर्फ़ मुझसे बात करते। अपना मोबाइल रिसीव नहीं करते, साइलेंट पर रख देते। रिसेप्शनिस्ट को ‘नो कॉल्स’ बोल दिया जाता। प्यून से किसी को केबिन में न आने देने की स़ख्त हिदायत दे दी जाती।

‘कुछ ज्यादा भाव नहीं देते!’ (उन्हें मुझमें कंपनी को आगे ले जा सकने वाले गट्स नजर आते होंगे। उनके ल़फ्ज कितनी शफ़क़त से लबरेज होते हैं।) यूं तो आप जिंदगी में तमाम लोगों से मिलते हैं, पर भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी को समझने का व़क्त ही कहां मिलता है? यह तो बस पिछले जन्म की अंडरस्टैंडिंग होती है, जो भागमभाग भरी जिंदगी में अपनापन और समझदारी का रिश्ता क़ायम कर लेती है।
‘आइ एम प्रिटी श्योर, यह मेरे पिछले जन्म के फादर हैं।’

(पर उम्र..!)
‘हूं, पिछले जमाने में जल्दी शादी हो जाया करती थी। अठारह साल की उम्र तक बच्चे भी हो जाया करते थे। संभावना नहीं, मुझे पूरा विश्वास है कि यही मेरे पिछले जन्म के फादर हैं।’
उन्ही दिनों डॉ. वॉल्टर सेमकिव की किताब बॉर्न अगेन प्रकाशित हुई थी, जिसे उन्होंने बताया था कि जे.के. रोलिंग महान लेखक चाल्र्स डिकेंस का पुनर्जन्म है। शाहरुख़ ख़ान पिछले जन्म में कलकत्ता की प्रख्यात नृत्यांगना साधना बोस थे और अब्दुल कलाम टीपू सुल्तान के रूप में पहले भी दक्षिण भारत की शोभा बढ़ा चुके हैं।

ख़ैर, मुझे उनके प्यार और विश्वास का मान रखना था। मैं अपना काम पूरी लगन से करती थी। जहां पांच बज कर तीस मिनट होते ही सब अपना काम-धाम छोड़कर सामान समेटने में लग जाया करते थे, मैं सात बजे तक फाइलों में सिर घुसाए बैठी रहती थी। ‘क्या चल रहा है?’ सर दबे पांव मेरे सामने आकर खड़े हो गए, पता ही नहीं चला।

‘स्टडी!’ मैंने गर्वित भाव से फाइल की ओर इशारा किया। ‘मैं जानता हूं श्वेतासी, तुम देर तक ऑफ़िस में काम करती हो। इसका मतलब यह नहीं कि तुम्हारा काम में मन लग रहा है। दरअसल, तुम्हें लगता है कि तुम हॉस्टल पहुंचकर करोगी क्या? चलो यहीं व़क्त काट लेते हैं।’ (.. बात तो हूबहू वही थी।) ‘देर से जाती हो, रास्ते में कोई प्रॉब्लम तो नहीं होती?’
मैंने आज्ञाकारी बेटी की तरह ‘न’ में सिर हिलाया और हॉस्टल की राह पकड़ ली। हाल ही में नए हॉस्टल में शिफ्ट हुई थी। सहेलियां बनाने का तो मुझे यूं भी कोई शौक़ नहीं रहा, पर दरो-दीवार, गलीचों-दरीचों से दोस्ती करने में व़क्त तो लगता है।

*****
बारिश हो रही थी। लाइट चली गई थी। जेनरेटर चल नहीं रहा था। मैं बार-बार ब्लाइंड हटाकर खिड़की को खोलने की कोशिश कर रही थी। मेरे कलीग मुझे बार-बार ऐसा करने से मना कर रही थीं।
‘अरे! बारिश हो रही है। यूं झांक-झांक कर क्या देख रहे हो? खिड़कियां खोल क्यों नहीं लेते? सुनो! बारिश की टप्-टप् कितनी अच्छी लगती है।’ कहने की देर कि सारे ऑफ़िस की खिड़कियां फटाफट खुल गईं।

‘मुझे तो लगता है कि इस मौसम में आर्किटेक्चर पकौड़े बनने चाहिए।’ सारा ऑफ़िस उनके खिलंदड़ बयान से हैरान था। ‘इन्हें कैसे पता चला कि मैं बारिश की दीवानी हूं।’ (ओह! यह फैक्ट मैं कैसे भूल गई कि इनके ऑफ़िस के सामने मेरा इंस्टीट्यूड भी तो था। बारिश को देखकर मैं पागल हो जाया करती थी और छतरी को बैग में दफ़ना कर एक कॉपी क़ुर्बानी वास्ते हाथ में दबाकर निकल पड़ती। बारिश का मजा भी पूरा हो जाता और लोगों की आंखों में बजाय शैतानी के दया के भाव उजागर होते।)

‘बेचारी कोचिंग से निकली होगी कि बारिश शुरू हो गई।’ ‘आजकल दिल्ली की बारिश ने भी मुंबई की बारिश की नक़ल करनी शुरू कर दी। नक़लची बारिश!’
सर के केबिन के सामने पूरी ग्लास वॉल थी, जहां से सड़क का भरपूर नजारा दिखता था। जब पहली दफ़ा इंटरव्यू के लिए आई थी, यही ग़ौर फ़रमाया था।

‘..हमारे इंस्टीट्यूट की लड़कियों को देखकर आइ टॉनिक लेते हैं।’ मन में उभरा भाव अनायास याद आ गया। ‘जब आप दो बजे इंस्टीट्यूट के गेट पर रिक्शे को इंतजार करती हुई खड़ी रहती थीं, हम आपको देखा करते थे।’ रही-सही कसर ऑफ़िस वालों ने पूरी कर दी थी। मुंबई ब्रॉन्च-ऑफ़िस खुलने के चर्चे गर्म थे। सारे लड़के वहां जाने के लिए मरे जा रहे थे। और लड़कियां नाक-भौंह.. ख़ैर, मैं तो तैयार थी। शर्तिया तौर पर वहां काम करने की आजादी और जिम्मेदारी दोनों ज्यादा थीं।

‘हमने सोचा है कि तुम्हें मुंबई शिफ्ट कर दें।’ ‘.. मैं शिष्टतापूर्वक मुस्कराई।’
‘बिकॉज यू आर.. ’ अपनी तारीफ़ सुनने के लिए बेक़रारी से उनका मुंह ताक रही थी।
‘ब्यूटीफुल!’ मैं चौंकी। यह क्या, उनके होंठ तो खुले नहीं। मैंने यह क्या, कैसे सुना लिया? वह भी उन्ही की आवाज में साफ़-साफ़!
‘टेलेंटेड!’ इस बार होंठ खुले और यह शब्द निकला। होंठ खुलने पर जो शब्द निकला वह तो समझ में आ गया। बिना होंठ खुले जो शब्द सुना, वह अभी तक समझ में नहीं आया था।
(ओह! याद आया। यही तो मेरी क़ाबिलियत थी त्रिकालदर्शी होने की। त्रिकालदर्शी नहीं, जो सब कुछ सुन लेते हैं। मैं ख़ुश थी कि मेरी भूली-बिसरी क़ाबिलियत अचानक लौट आई थी।)

‘मुंबई गया था। दो ऑफ़िस पसंद आए। दरअसल, मैं ऑफ़िस कम रेजीडेंस चाह रहा था। इसलिए व़क्त लग गया।’ ‘मुंबई में कोई रिलेटिव है’, जैसे कोई जरूरी बात याद आ गई।
‘हां ?’ ‘वेल! वहां रुकने की कैसी स्थिति है?’ ‘उन्ही के पास’ ‘कहां रहते हैं वे लोग?’ ‘चैंबूर’

‘और ऑफ़िस है पनवेल में। अप-डाउन करने में ही दो घंटे लग जाएंगे। इसलिए हमने तुम्हें वहां एकमोडेशन देने का सोचा है।’ ‘..अकेली रहूंगी वहां पर’, मैं पूछना चाह रही थी। ‘हर वीकएंड पर मैं आऊंगा ही’, अनायास जवाब मिल गया। लाजवाब चीज होती है टेलीपैथी भी, पेचीदा से पेचीदा मामलों को भी निबटा देती है। उस रात बारिश तो नहीं हुई, पर पूरी रात बारिश की नमी महसूस होती रही।

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