घर खरीदने से पहले
रियल एस्टेट बाजार में पिचले कई सालों से जोरदार तेजी आयी है. परिणाम स्वरुप देश की कई जाने-माने औद्योगिक समूह रियल एस्टेट क्षेत्र में अपनी विभिन्न परियोजनाओं को पेश कर रहें हैं। तेजी से विकास कर रहें इस क्षेत्र में कंपनियों की आपसी प्रतिस्पर्धा भी कोई कम नहीं है. कम्पनियाँ अपने अपने प्रोजेक्ट को अच्छा बताकर ग्राहकों को लुभावने कि हर संभव प्रयास कर रही हैं. अब चूँकि रियल एस्टेट माकेट पूरी तरह से पेशेवर और पारदर्शी नहीं है,तो ये जरुरी हो जाता है कि घर खरीदने से पहले उपयुक्त प्लानिंग की जाय. घर खरीदने से पहले थोड़ा सा सा होमवर्क बडी मुश्किल से बचा सकता है. आईये उन सावधानियों पर गौर करें
इलाके और उसकी कीमत को समझे
आप जिस इलाके में घर लेने की सोच रहे हैं उस इलाके की कीमतों को सबसे पहले समझें. साथ ही यह भी ध्यान रखें कि आप किस तरह के प्रोजेक्ट में घर ले रहे हैं. उदाहरण के लिए एक ही इलाके में ग्रुप हाउसिंग और बिल्डर फ्लैट की कीमतें अलग-अलग होती हैं. अगर ग्रुप हाउसिंग में घर ले रहे हैं, तो उस प्रोजेक्ट की सभी यूनिटों के रेट्स ले लें. फिर उनकी तुलना करें.
घर आप जिस भी प्रोजेक्ट में खरीदें , उसमें उपलब्ध सुविधाओं पर जरुर ध्यान दें . साथ ही प्रॉपर्टी के डाउन पेमेंट, उसकी कुल कीमत, अचानक होने वाले खर्च, कार पार्किग चार्ज, स्टांप डयूटी और रजिस्ट्रेशन आदि के खर्चो को भी समझ लें. अगर प्रॉपर्टी बुक करा रहे हों, तो ये तय कर लें कि तय समय पर जो रकम देनी हो, वही देनी पड़े. इसमें घटत-बढ़त न हो.
लोन लेते समय सावधानी
१- प्रॉपर्टी की खरीदारी में बैंक लोन की एक अहम् भूमिका होती है. कर्ज लेने से पहले बैंकों की ब्याज दरों की तुलना अवश्य कर लें . जो बैंक सस्ता लोन दे रहा हो, उसी से लोन लेने की कोशिश करें. कर्ज के लिए बैंक से संपर्क करते समय एक पत्र तैयार करें जिसमें आप अपनी जरूरत की राशि और उसके लिए हर महीने देने वाले किश्त का जिक्र जरूर करें. महीने की आमदनी तथा क़र्ज़ की अवधि का भी ब्योरा स्पष्ट रूप से रखें.
२- लोन लेते समय एक बात और ध्यान देने योग्य है कि बिल्डर के दबाव में आकर किसी खास बैंक से लोन तब तक न लें जब तक बैंक की विश्वसनीयता पर भरोसा न हो.
३- जिस प्रोजेक्ट को केवल एक बैंक लोन कर रहा हो वहां घर खरीदनें से बचना चाहिए। क्योंकि ज्यादा बैंक प्रोजेक्ट की विश्वसनीयता की गारंटी होते हैं और बिल्डर के प्रोजेक्ट में थोड़ा भी खामी होती है तो बैंक उसके प्रोजेक्ट को लोन नहीं देते।
४- लोन लेते समय टाइम लिंक होम लोन की बजाय कंस्ट्रक्श्न लिंक होम लोन को प्राथमिकता दें. इसका फायदा ये होता है की जीतनी तेजी से प्रोजेक्ट बनता है उसी हिसाब से आपके लोन का पैसा बिल्डर कोमिलाता है। चूँकि बिल्डरों को पैसे की तंगी होती है, ऐसी स्तिथि में वे डाउन पेमेंट पर ज्यादा छूट देने की बात करते हैं। लेकिन डाउनपेमेंट केवल 80 परसेंट कंस्ट्रक्शन हो चुके प्रोजेक्ट पर ही करें। अगर प्रोजेक्ट अभी लांच हुआ है या थोडा काम हुआ तो कंस्ट्रक्शन लींक पेमेंट ही करें. बिल्डर की बातों में न आयें
होम लोन के बहाने कुछ बुनियादी और अहम जानकारियों का पता लगायें
आप प्रोजेक्ट से जुडी कुछ बुनियादी और अहम जानकारियां होम लोन के माध्यम से पता कर सकते हैं. जैसे अगर आप को जानना है कि जमीन की रजिस्ट्री हुई है या नहीं, पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिली है कि नहीं इत्यादि, तो लोन लेते समय सम्बंधित कागजातों की जाँच पड़ताल करके जानकारी प्राप्त की सकती है. ये जानकारी पाना काफी आसन होता है क्यूंकि बैंकों और उनके डीएसए (डाइरेक्ट सेलिंग एजेंट) का बिल्डरों से समझौता होता है और उससे सम्बंधित कागजात बैंक के पास होते हैं. कई बार आधे अधूरे मंजूरी के साथ बिल्डर प्रोजेक्ट लांच करते हैं, ऐसी परिस्थिति में बेहतर यही है कि खरीदी जाने वाली प्रॉपटी के कागजात कि छानबीन होम लोन के बहाने करें या अपने जानने वाले किसी वकील से चेक करा लें। घर खरीदते समय, खास कर अगर यह निर्माणाधीन है तो दीवार की गुणवत्ता, ईंट का काम, फिनिशिंग, बिजली का काम आदि पर भी ध्यान देना जरुरी होता है . इससे ये पता लग जाता है कि काम सुचारू रूप से चल रहा है.
प्रतिष्ठित डीलर या कंपनी
आज कल आये दिन स्मम्चार पत्रों व चैनलों में छुटभैये बिल्डरों के भ्रष्ट कारनामों की खबरें चपाती रहती हैं. ऐसी स्तिथि में डीलर या बिल्डरके प्रोजेक्ट्को खरीदने के बारे में सोचना चाहिए जो प्रतिष्ठित और विश्वसनीय हो. किसी धोखे से बचने के लिए डीलर या कंपनी के बारे में भी ठीक से जानकारी जुटा लेना आवश्यक होता है.
कनेक्टिविटी पर गौर करें
घर खरीदने से पहले उसकी लोकेशन तय करने का पैरामीटर हमेशा अपनी रोजमर्रे की जरूरत को बनाएं. उस इलाके का इन्फ्रास्ट्रक्चर, बस अड्डे, रेलवे स्टेशन, मेट्रो, स्कूल, हॉस्पिटल, बाजार और अपने ऑफिस की कनेक्टिविटी के बारे में छानबीन कर लें . आधुनिक दौर में मॉल और मनोरंजन के दूसरे स्थल भी काफी मायने रखने लगे हैं. क्यूंकि प्रॉपर्टी की कीमतें अब इनके आधार पर भी तय होने लगी है. जिस जगह आप प्रॉपर्टी खरीदने जा रहे हैं, वहां की भविष्य कैसा रहेगा. इस पर भी गौर करना आवश्यक होता है. मान लीजिए जिस जगह आप मकान खरीद रहे हैं, वहां अगले दो साल में मेट्रो निकलनी हो, तो जाहिर है वहां की कीमत बढ़ेगी. ऐसे में वहां निवेश करना फायदेमंद साबित हो सकता है.
फ्री होल्ड या लीज होल्ड
प्रॉपटी खरीदते वक्त ये जरुर जान लें की जमीन किसके नाम से है. जमीन बिल्डर के नाम है या किसी और के नाम. जमीन फ्री होल्ड है या लीज होल्ड. प्रॉपटी खरीदते वक्त इस पक्ष पर ध्यान देना बेहद जरुरी होता है. साथ ही ये भी पता लगायें की जमीन पर किसी सरकारी व्यक्ति, संस्था या चैरिटी ट्रस्ट का कब्जा तो नहीं. अगर है तो यह जानना आवश्यक है कि बिल्डर ने कानूनी हक पाने के लिए सभी शर्ते पूरी की हैं या नहीं. अमूमन कई बार होता ये है की लोग घर खरीदने के बाद उसमें जब रहने पहुंचते हैं तो उन्हें पता चलता है कि जमीन किसी और के नाम है. इसके बाद उस जमीन का मालिकाना हक पाने के लिए जेब से अच्छी खासी रकम ढीली हो जाती है. कानून के अनुसार "अगर जमीन पर किसी चैरिटेबल ट्रस्ट का अधिकार है तो बिल्डर को ट्रस्ट के आयुक्त से उस जमीन पर निर्माण के लिए अनुमति लेनी होती है.इसके अलावा प्रॉपर्टी को बेचने से पहले भी चैरिटी कमिश्नर से अनुमति लेना जरूरी होता है." ऐसी जमीन पर हुए निर्माण में अपनी कमाई लगाने से पहले यह जानकारी जरूर लें कि बिल्डर ने ये सभी शर्ते पूरी की हैं या नहीं. किसी भी बिल्डिंग, अपार्टमेंट या मकान बनाने के लिए नगर निगम या संबंधित प्राधिकरण से मंजूरी लेना जरूरी होता है. इसके बाद ही बिल्डर निर्माण कार्य कर सकता है. बिल्डिंग की ऊंचाई के लिए भी अनुमति लेनी होती है. ज्यादातर मामलों में निगम बिल्डिंग की ऊंचाई और अवैध निर्माण को नजरअंदाज करता रहता है. मौके का फायदा उठाते हुए बिल्डर निर्धारित से ज्यादा ऊंची इमारत बना देते हैं.
किसी भी अपार्टमेंट या बिल्डिंग में फ्लैट खरीदने से पहले यह पता कर लें कि निगम ने बिल्डिंग प्लान मंजूर किया था या नहीं. यह भी पता करना चाहिए कि जो फ्लैट आप खरीद रहे हैं वह प्लान के मुताबिक बनाया गया है या उसमें तब्दीली की गई है. अगर तब्दीली की गई है तो उसकी अनुमति ली गई या नहीं. हर उस चीज पर नजर डालें जो गैरकानूनी हो सकती है. ऐसा न हो कि बिल्डर गैरकानूनी तरीके से निर्माण कर प्रॉपर्टी बेच जाए और बाद में निगम आपको ही दोषी ठहराए. प्राधिकरण किसी बिल्डिंग के निर्माण के लिए मंजूरी देते वक्त नामंजूरी सूचना पत्र भी देता है. इसमें बताया जाता है कि किन कारणों से बिल्डिंग प्लान को नामंजूर किया जा सकता है. यह पत्र एक साल के लिए जारी किया जाता है. यह जान लेना जरूरी है कि प्राधिकरण ने उस बिल्डर को तो कोई नामंजूरी पत्र नहीं भेजा था. अगर भेजा था तो प्राधिकरण ने पत्र में किन-किन कारणों का जिक्र किया. यह भी पता करना चाहिए कि बिल्डर को निर्माण कार्य शुरू करने की अनुमति मिली थी या नहीं. नामंजूरी सूचना पत्र की तरह यह भी एक साल के लिए वैध होता है. इस पत्र का भी समय-समय पर नवीनीकरण कराना पड़ता है.
इसके अलावा समझौता पत्र आपकी प्रॉपर्टी से जुड़ा ऐसा दस्तावेज है जिसको लेकर आप किसी तरह की लापरवाही नहीं बरतना चाहेंगे. इसमें दी गई हर बात को गौर से पढ़ना चाहिए. इस दस्तावेज में आपके फ्लैट के फ्लोर, फ्लैट नंबर, विंग, बिल्ट अप एरिया, भुगतान का तरीका और आपके गृह प्रवेश की तारीख तक हो सकती है. देख लें कि हर शर्त को ढंग से बताया गया हो. यह वही दस्तावेज है जिससे खरीदार और विक्रेता के बीच फ्लैट की बिकवाली और खरीदारी का समझौता होता है. जमीन, फ्लैट या घर की खरीदारी के लिए अगर पूरा स्टाम्प शुल्क जमा नहीं किया गया है तो सभी दस्तावेज पूरी तरह से अवैध माने जाएंगे. ऐसा होने पर आप पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है. प्रॉपर्टी के बाजार मूल्य या समझौता पत्र में दर्शाई गई राशि में जो ज्यादा हो उसके मुताबिक स्टाम्प शुल्क का भुगतान करना होता है. यह भुगतान समझौते के दौरान या उससे पहले कर देना चाहिए.
स्टाम्प ड्यूटी भुगतान के साथ ही समझौते का रजिस्ट्रेशन भी कराना होता है. यह सब-रजिस्ट्रार के साथ समझौते के चार महीने के भीतर हो जाना चाहिए. अगर इसमें किसी वजह से देरी होती है तो रजिस्ट्रार कुछ जुर्माना लगा कर चार महीने बाद भी पंजीयन कर सकता है. इस प्रक्रिया को किसी भी हालत में अनदेखा न करें. संबंधित विभाग इस प्रक्रिया को और आसान बनाने के लिए प्रक्रिया को कंप्यूटराइज्ड करने की कोशिश में हैं. अगर समझौते का पंजीयन नहीं कराया गया है तो सभी दस्तावेज अवैध माने जाएंगे. अगर ऐसा होता है तो आप भारी भरकम राशि देने के बाद भी परेशानी में पड़ सकते हैं



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