(किस्सा अलीगढ़ का है।
एक जानने वाले ने सुनाया था,
ये वादा लेते हुए कि मैं इसपे
कुछ न कुछ लिखूं)
(गंभीर लेखक,टीवी पत्रकार व उपन्यास लेखक) |
गली में बनियों का राज था। ढेर सारी दुकानें, आढ़तें और न जाने कितने गोदाम। सब के सब इसीगली में थे। बनिए और उनके नौजवान लड़के दिन भर दुकान पर बैठे ग्राहकों से हिसाब किताब
में मसरुफ रहते। शुरु - शुरु में वो इस गली से गुजरने में डरती थी, न जाने कब किसकी गंदी फब्ती कानों को छलनी कर दे। फिर क्या पता किसी का हाथ उसके बुरके तक भी पहुंच जाए। डरते सहमते जब वो इस गली को पार कर लेती तब उसकी जान में जान आती। मगर डर का यह सिलसिला ज्यादा दिनों तक नहीं चला। उसने गौर किया ग्राहकों से उलझे बनिए उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देते। हां इक्का दुक्का लड़के उसकी तरफ जरुर देखते मगर उनकी जिज्ञासा उसके शरीर में न होकर के उस काले बुर्के में थी जिससे वो अपने को छुपाए रखती थी।
में मसरुफ रहते। शुरु - शुरु में वो इस गली से गुजरने में डरती थी, न जाने कब किसकी गंदी फब्ती कानों को छलनी कर दे। फिर क्या पता किसी का हाथ उसके बुरके तक भी पहुंच जाए। डरते सहमते जब वो इस गली को पार कर लेती तब उसकी जान में जान आती। मगर डर का यह सिलसिला ज्यादा दिनों तक नहीं चला। उसने गौर किया ग्राहकों से उलझे बनिए उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देते। हां इक्का दुक्का लड़के उसकी तरफ जरुर देखते मगर उनकी जिज्ञासा उसके शरीर में न होकर के उस काले बुर्के में थी जिससे वो अपने को छुपाए रखती थी।
वो पढ़ती नहीं थी, छोटी क्लास के बच्चों को पढ़ाती थी। तमाम शहर में मकान तलाशने के बावजूद जब उसके अब्बा को मकान नहीं मिला तो हारकर इस बस्ती का रुख करना पड़ा। अब्बा ने मशविरा दिया था
'' बेटी घर से बाहर न निकलो '' मगर उनकी आवाज में ज्यादा दम नहीं था। घर में कमाने वाला कोई न था फिर वो कुछ रुपयों का इंतजाम कर रही थी तो इसमें बुरा क्या था। दिन गुजर रहे थे उसके स्कूल जाने का सिलसिला जारी था। उसने नोट किया इधर बीच बनियों की गली के ठीक बाद पड़ने वाले चौराहे पर पास के मदरसे के तीन चार लड़के रोज खड़े रहते हैं। उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। दिल में एकबारगी आवाज उठी , भला इनसे क्या डरना। एक दिन अजीबो गरीब बात हुई। चौराहे पर एक लड़का उसके ठीक सामने आ गया। हाथ उठाकर बडी अदा से कहा अस्सलाम आलेकुम। वो चौंक गई। उसके लड़कों से इस तरह की उम्मीद कतई नहीं थी। उसने कोई जवाब नहीं दिया। कलेजा थर थर कांप रहा था। वापसी में भी वही लड़के उसके सामने खड़े थे। उसने घबरा कर तेज तेज चलना शुरु कर दिया। लड़के उसकी तरफ बढे मगर वो फटाक से बनियों कीगली में घुस गई। लंबी - लंबी दाढ़ी , सफाचट मूंछ ओर सिर पर गोल टोपी रखने वाले लड़कों के इरादे उसे वहशतनाक लगे। रात को वो सो नहीं सकी। रात भर जहन में यही ख्याल आता रहा कि कल क्या होगा। उसने ख्वाब भी देखा , बड़ी दाढ़ी वाले एक लड़के ने उसका दुपट्टा खींच लिया है।
स्कूल जाने का वक्त हो गया था। वो दरवाजे तक गई मगर फिर लौट आई। आज फिर बदतमीजी का सामना करना पड़ा तो.....। उसने अब्बा से दरख्वास्त की, उसके साथ स्कूल तक चलें। उसने खुलकर कुछ नहीं कहा। अब्बा ने भी कुछ नहीं पूछा। मगर उन्हें बनियों पर बेतहाशा गुस्सा आया। दांत किचकिचाते हुए उन्होंने अंदाजा लगा लिया कि बनिये के किसी लड़के ने उनकी बेटी को छेड़ा है। बेटी को गली के पार पहुंचाने के बाद वो वापस लौटने लगे। चौराहे पर अभी भी वो लड़के खड़े थे। उसने अब्बा से स्कूल तक चलने की बात कही। आज लड़के कुछ नहीं बोले। वापसी में उसका दिल जोर जोर से धड़क रहा था। मगर नहीं चौराहे पर लड़के नदारद थे। उसने खुदा का शुक्र अदा किया। घर पहुंची तो अम्मा उसकी परेशानी का सबब पूछ रहीं थीं। अम्मा बार बार बनियों को गाली भी दे रहीं थीं। उन्होंने उसे गली छोड़ने की सलाह भी दी। मगर वो कुछ नहीं बोली।
आज अब्बा घर नहीं थे। उसे पहले की तरह अकेले स्कूल जाना था। गली से चौराहे पर पहुंचते वक्त उसका कलेजा धाड़ धाड़ बज रहा था। चौराहे पर लड़के हमेशा की तरह उसके इंतजार में खड़े थे। वो हिम्मत बांधकर आगे बढ़ी मगर फिर एक लड़का उसके सामने आ गया। उसके बढ़ने के अंदाज ने उसकी रीढ़ में सिहरन पैदा कर दी। उसके मुंह से चीख निकल गई। वो वापस बनियोंकी गली की तरफ दौड़ पड़ी। गली के बनिये सारा तमाशा देख रहे थे। शरीफ लड़की से छेड़छाड़ उन्हें रास नहीं आई। गली के नौजवान मदरसों के इन लुच्चों की तरफ दौड़ पड़े। जरा सी देर में पूरी गली के बनिये शोहदों की धुनाई कर रहे थे। भीड़ लड़कों को पीट रही थी और वो चुपचाप किनारे से स्कूल निकल गई। वापस में चौराहा खामोश था। लड़के नदारद थे। गली से गुजरते वक्त उसे ऐसा लगा कि हर कोई उसे देख रहा है। मगर ये आंखें उसे निहारने के लिए नहीं उठी थीं। ये सहानूभूति और गर्व से उठी नजरें थीं जो उसे बता रहीं थीं कि चिंता मत करो हम अपनी बहू बेटियों के साथ छेड़छाड़ करने वालों का यही हश्र करते हैं।
घर पहुंची तो देखा अब्बा एक मौलवी से गूफ्तगू कर रहे हैं। ये उस मदरसे के प्रिंसिपल थे जहां मार खाने वाले लड़के तालीम हासिल कर रहे थे। अब्बा ने उसे हिकारत की नजर से देखा। उसे कुछ समझ नहीं आया। कमरे में गई अम्मा से मसला पूछने। जबान खोली ही थी कि एक थप्पड़ मुंह पर रसीद हो गया।
उसे समझ नहीं आया कि आखिर माजरा क्या है। अम्मा सिर पटक रहीं थीं, उसने खानदान के मुंह पर कालिख पोत दी। अम्मा बयान कर करके रोए जा रहीं थीं। उनकी बुदबुदाती आवाज में उसे सिर्फ इतना समझ आया, बनिए के लड़कों से उसकी यारी थी जिन्होंने उन शरीफ तालिबे इल्मों को पीट दिया। उसका कलेजा मुंह को आ गया , आंखों में आंसू की बूंद छलक आई। अगलीसुबह घर में खाना नहीं पका। उसके स्कूल जाना छोड़ दिया।
'' बेटी घर से बाहर न निकलो '' मगर उनकी आवाज में ज्यादा दम नहीं था। घर में कमाने वाला कोई न था फिर वो कुछ रुपयों का इंतजाम कर रही थी तो इसमें बुरा क्या था। दिन गुजर रहे थे उसके स्कूल जाने का सिलसिला जारी था। उसने नोट किया इधर बीच बनियों की गली के ठीक बाद पड़ने वाले चौराहे पर पास के मदरसे के तीन चार लड़के रोज खड़े रहते हैं। उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। दिल में एकबारगी आवाज उठी , भला इनसे क्या डरना। एक दिन अजीबो गरीब बात हुई। चौराहे पर एक लड़का उसके ठीक सामने आ गया। हाथ उठाकर बडी अदा से कहा अस्सलाम आलेकुम। वो चौंक गई। उसके लड़कों से इस तरह की उम्मीद कतई नहीं थी। उसने कोई जवाब नहीं दिया। कलेजा थर थर कांप रहा था। वापसी में भी वही लड़के उसके सामने खड़े थे। उसने घबरा कर तेज तेज चलना शुरु कर दिया। लड़के उसकी तरफ बढे मगर वो फटाक से बनियों कीगली में घुस गई। लंबी - लंबी दाढ़ी , सफाचट मूंछ ओर सिर पर गोल टोपी रखने वाले लड़कों के इरादे उसे वहशतनाक लगे। रात को वो सो नहीं सकी। रात भर जहन में यही ख्याल आता रहा कि कल क्या होगा। उसने ख्वाब भी देखा , बड़ी दाढ़ी वाले एक लड़के ने उसका दुपट्टा खींच लिया है।
स्कूल जाने का वक्त हो गया था। वो दरवाजे तक गई मगर फिर लौट आई। आज फिर बदतमीजी का सामना करना पड़ा तो.....। उसने अब्बा से दरख्वास्त की, उसके साथ स्कूल तक चलें। उसने खुलकर कुछ नहीं कहा। अब्बा ने भी कुछ नहीं पूछा। मगर उन्हें बनियों पर बेतहाशा गुस्सा आया। दांत किचकिचाते हुए उन्होंने अंदाजा लगा लिया कि बनिये के किसी लड़के ने उनकी बेटी को छेड़ा है। बेटी को गली के पार पहुंचाने के बाद वो वापस लौटने लगे। चौराहे पर अभी भी वो लड़के खड़े थे। उसने अब्बा से स्कूल तक चलने की बात कही। आज लड़के कुछ नहीं बोले। वापसी में उसका दिल जोर जोर से धड़क रहा था। मगर नहीं चौराहे पर लड़के नदारद थे। उसने खुदा का शुक्र अदा किया। घर पहुंची तो अम्मा उसकी परेशानी का सबब पूछ रहीं थीं। अम्मा बार बार बनियों को गाली भी दे रहीं थीं। उन्होंने उसे गली छोड़ने की सलाह भी दी। मगर वो कुछ नहीं बोली।
आज अब्बा घर नहीं थे। उसे पहले की तरह अकेले स्कूल जाना था। गली से चौराहे पर पहुंचते वक्त उसका कलेजा धाड़ धाड़ बज रहा था। चौराहे पर लड़के हमेशा की तरह उसके इंतजार में खड़े थे। वो हिम्मत बांधकर आगे बढ़ी मगर फिर एक लड़का उसके सामने आ गया। उसके बढ़ने के अंदाज ने उसकी रीढ़ में सिहरन पैदा कर दी। उसके मुंह से चीख निकल गई। वो वापस बनियोंकी गली की तरफ दौड़ पड़ी। गली के बनिये सारा तमाशा देख रहे थे। शरीफ लड़की से छेड़छाड़ उन्हें रास नहीं आई। गली के नौजवान मदरसों के इन लुच्चों की तरफ दौड़ पड़े। जरा सी देर में पूरी गली के बनिये शोहदों की धुनाई कर रहे थे। भीड़ लड़कों को पीट रही थी और वो चुपचाप किनारे से स्कूल निकल गई। वापस में चौराहा खामोश था। लड़के नदारद थे। गली से गुजरते वक्त उसे ऐसा लगा कि हर कोई उसे देख रहा है। मगर ये आंखें उसे निहारने के लिए नहीं उठी थीं। ये सहानूभूति और गर्व से उठी नजरें थीं जो उसे बता रहीं थीं कि चिंता मत करो हम अपनी बहू बेटियों के साथ छेड़छाड़ करने वालों का यही हश्र करते हैं।
घर पहुंची तो देखा अब्बा एक मौलवी से गूफ्तगू कर रहे हैं। ये उस मदरसे के प्रिंसिपल थे जहां मार खाने वाले लड़के तालीम हासिल कर रहे थे। अब्बा ने उसे हिकारत की नजर से देखा। उसे कुछ समझ नहीं आया। कमरे में गई अम्मा से मसला पूछने। जबान खोली ही थी कि एक थप्पड़ मुंह पर रसीद हो गया।
उसे समझ नहीं आया कि आखिर माजरा क्या है। अम्मा सिर पटक रहीं थीं, उसने खानदान के मुंह पर कालिख पोत दी। अम्मा बयान कर करके रोए जा रहीं थीं। उनकी बुदबुदाती आवाज में उसे सिर्फ इतना समझ आया, बनिए के लड़कों से उसकी यारी थी जिन्होंने उन शरीफ तालिबे इल्मों को पीट दिया। उसका कलेजा मुंह को आ गया , आंखों में आंसू की बूंद छलक आई। अगलीसुबह घर में खाना नहीं पका। उसके स्कूल जाना छोड़ दिया।

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