गलतियाँ





                      विनय वेद  
              (वरिष्ठ कवि व लेखक )                     
      कुछ अनकही 
                 
          

पूछो न तुम कि क्या क्या हुआ !
किस किस ने आ कर मुझे छुआ !
रहा न मैं फिर पहले जैसा कभी,
जब से टूट कर लौटी मेरी दुआ !


अपने ही पिंजरे का हूँ दायरा,
अपने ही डर का खिचाव हूँ !
अपने ही देव दानव बने,
रिश्ता बन बन के टूटा लगाव हूँ !
मैं हूँ कि जैसे हुआ न हुआ !
हर तरफ है खाई, हर तरफ कुआँ !
रहा न मैं फिर पहले जैसा कभी,
जब से टूट कर लौटी मेरी दुआ !


ज़लालत की तरफ क्यूँ जाते हैं,
मेरे क़दमों के, करमों के निशां
आइनों में क्यूँ बदल जाये हैं,
मेरी शक्लों अक्लों जैसे इन्सां !
ज़िन्दगी बन गयी सड़क का जुआ !
हर पासा मेरे पास है पलटा हुआ !
रहा न मैं फिर पहले जैसा कभी,
जब से टूट कर लौटी मेरी दुआ !

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