मुरली मनोहर श्रीवास्तव
|
आजकल रीमिक्स को देख कर मुझे ओरिजनल संस्करण पर तरस आता है। कहीं भी नजर घुमाईये आज जमाना रीमिक्स का है, ओरिजिनल संस्करण को कौन पूछता है। हिंदी के रीमिक्स में हिंग्रेजी बोलने वाले छाये हैं जबकि हिन्दी का शुद्ध साहित्य लिखने वाले पानी भर रहे हैं। नई पीढी का आलम यह है कि रैंप पर माडलिंग देख ऐसा लगता है कि माडल मर्द का रीमिक्स है। चाहे वह पुरुष श्रेणी में हो या महिला। रंग- ढंग , चाल-ढाल सबरीमिक्स । यही हाल शिक्षा से ले कर राजनीति के मूल संस्करण तक सभी का है।
मेरी बात को मजाक में मत लीजिये । मैं मंदिर में जाता हूँ तो पुजारी का मोबाईल देख मुझे उसके दादा जी याद आ जाते हैं , जो बंडी और धोती में पंचांग दबाये चबूतरे पर बैठते थे । आज के मोबाईल वाले पुजारी जी तिलक तो लगाते हैं पर मगर डिजाईनर कुर्ते के साथ सोफ़े पर बैठ कम्प्यूटर से कुंडली बनाते हैं। भला यह इक्कीसवीं सदी में बीसवीं सदी के रीमिक्स नहीं तो और क्या हैं ? आज ओरिजिनल हो भी तो वह बेकार है। उसे कोई नहीं पूछता । मेरे साथ उठने बैठने वाले सिद्धांतप्रिय नेता राजनीति छोड चुके हैं । टिकट की बात छोडिये उन्हें मंच तक पर कोई आने नहीं देता । सफ़ल वही है जो समय की चाल ढाल पहचानता है । जो चोला बदलने में माहिर है वही ,वही वक्त की रफ़्तार को पकड सकता है। जितने रीतिकालीन धारा में कविता लिख रहे थे या पीडा जी रहे थे सब आउटडेटेड हो गये ।आज सूर और मीरा के मूल संस्करण बच्चों की कोर्स की किताबों तक हैं । उनके भजनों के रीमिक्स बन गये और कापी राइट वाले उन भजनों से कमा कर छक गये । यही हाल खेल का है । राष्ट्रीय हो या अंतरराष्ट्रीय स्पर्धायें खिलाडियों के रीमिक्स संस्करण ही जीतते हैं ओरिजिनल खिलाडी को तो टीम में जगह तक नहीं मिलती। इसका एक इम्प्रूव्ड वर्सन भी है । खिलाडी राजनीति में माहिर हो गये हैं जबकि राजनीतिज्ञ खेल खेल रहे हैं । खिलाडी टांग खींचते हैं, राजनीतिज्ञ बाल को सीमा रेखा के बाहर फ़ेंक कर छक्का लगाते हैं और इसके बाद बाल के वापस आने का इंतजार करते हैं ।
रीमिक्स आईटम नहीं है, आज की मानसिकता है। बेटर वे में लिखें तो कहेंगे आज की मांग है । री मिक्स का रिफ़्लेकशन कुछ ऐसे समझिये कि यंग जनरेशन को फ़्रीडम, रिलेशन और ट्रेडिशनल सबकी फ़ीलिंग साथ-साथ चाहिये। वह डैड को छोड नहीं सकती मगर उसके बताये फ़ार्मूले पर चल भी नहीं सकती। वह होटल में कांटिनेंटल डिश खाने के बाद भी माँम( मम्मी) की बनायी हुई देशी खिंचडी टेस्ट करना चाहता है। ड्राईंग रूम में इटैलियन फ़र्नीचर तो लगाना चाहता है मगर दादा जी की बेंत की कुर्सी नहीं हटाना चाहता। ऐसा नहीं है कि हिंग्लिश बोलने वाला अंग्रेजी नहीं बोल सकता। मगर बीच बीच में हिंदी के शब्द पिरोने से मुहल्ले में बोली जाने वाली भाषा का मोह उसे अपनी गलियों की पीडा से जोडे रखता है। रीमिक्स प्योर इंडियन फ़ीलिंग प्रदर्शित करता है । वे कंट्री छोड नहीं सकते और यहां के उजडे दयार में उनका दिल नहीं लगता तो वे क्या करेंगे। ओरिजनल रहना नहीं चाहते,विदेशी हो नहीं सकते तो रीमिक्स हो जाईये।एक पा।व इधर , दूसरा पांव उधर। रीमिक्सिंग से स्कोप बढ जाता है। ऐसा लगता है अचानक हमारा कद कहीं इंटर्नेशनल लेवल पर चक्कर काट रहा है।अचानक सम्पूर्ण विश्व की समस्यायें हमारी अपनी समस्यायें लगती हैं । इतना ही नहीं दुनियां लेटेस्ट चीज भी हमें अपनी सी लगती है। कहीं भी कोई घटना हो जाये उसे मीडिया द्वारा हम अपने भीतर महसूस करने लगते हैं । इस फ़ीलिंग में भी हमारे पैर अपनी संस्कृति में धंसे रहते हैं। नतीजा यह कि जो देश छोड कर बाहर जाते हैं वे भी पीढियां बीतने के बाद भारतीय कहलाते हैं। रीमिक्स के इस मेले में कई बार मुझे अपना ओरिजिनल संस्करण ढूंढने में भी बडी दिक्कत आती है।

Post a Comment