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अमित गुप्ता
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पिछले महीने की २२ तारीख को उत्तरी चीन के हेबई प्रांत में एक अदालत ने दुनिया के सबसे बड़े मोबाइल ऑपरेटर चाइना मोबाइल के पूर्व उप महाप्रबंधक झांग चुनजियांग को रिश्वत लेने के जुर्म में दो साल की रोक के साथ मौत की सजा सुनाई जबकि 21 अन्य को जेल भेज दिया। बताया जाता है कि 53 साल के झांग ने 1994 से 2009 के बीच 74.60 लाख युआन यानी करीब 11.5 लाख अमेरिकी डॉलर घूस के रूप में लिए। अदालत ने झांग की निजी संपत्ति को भी जब्त करने और उसके राजनीतिक अधिकार भी छीन लेने का आदेश सुनाया। भ्रस्टाचार के खिलाफ ये है चीन का रुख. भ्रष्टाचार के प्रति अपनी ' जीरो टालरेंस ' निति की बदौलत आज चीन विकास स्तर में भारत से मीलों आगे निकल चुका है. ये तो बस एक बानगी है. ऐसी अनेकों उदाहरण चीन में देखने को मिलती हैं जब भ्रष्टाचार में लिप्त राजनेताओं, कर्मचारियों व् अन्य नागरिकों को सूली पर लटका दिया गया. इसी १९ जुलाई को दो भ्रष्ट राजनेताओं को फाँसी पर चढ़ा दिया गया – ये थे पूर्व मेयर झेंगियांग प्रांत के हांगझोउ के पूर्व उपमेयर शू मेइयोंग और जियांगसू प्रांत के सुझोउ के पूर्व उप मेयर जियांग रेन्जी जो रिश्वत लेने, हेराफेरी और पद के दुर्रपयोग के दोषी पाए गए. १२ मई को मृत्यु दंड की सजा सुनाई गई और महज़ २ महीने नौं दिन के बाद लटका दिया गया. चीन ही क्यूँ, दुसरे भी देशों में भ्रष्टाचार के प्रति यही अंदाज़ देखने को मिलता है. लेकिन इस देश में भ्रष्टाचार के कीर्तिमान बन रहे हैं. रोज रिकॉर्ड टूट रहे हैं. 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, एस बैंड घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, आदर्श सोसाइटी घोटाला, अनाज घोटाला, हसन अली प्रकरण, विदेशों में काला धन आदि घोटालों के कारण देश का अरबों रुपया भ्रष्टाचारियों द्वारा लूट लिया गया है. हर रोज एक नया खुलासा हो रहा है. लेकिन सजा के नाम पर सिर्फ तमाशा होता है फिर वह तमाशा चाहे संसद में हो या किसी मीडिया चैनल के प्राईम शो में. यहाँ सूली तो क्या किसी को मामूली सजा भी नहीं होती है. और होगी भी कैसे जब लोकतंत्र के तीनो स्तम्भ आपस में ही लड़ रहे हैं उअर वें खुद ही भ्रस्टाचार में लिप्त हैं. मंत्री प्रधानमंत्री की बात ही नहीं मान रहा और सुप्रीमकोर्ट हाईकोर्ट में हो रहे भ्रष्टाचार पर उंगली उठा रहा है. सरकारी अफ़सर व राजनेता घोटालों में लिप्त होने के बावजूद पद और कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं हैं. आलम यह है की भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्त्ता दत्ता पाटिल,सतीश शेट्टी, पर्यावरणविद अमित जेठवा को जान से मार दिया जाता है. बाबा रामदेव को रामलीला से आंधी रात को बलपूर्वक खदेढ़ दिया जाता है . अन्ना हजारे पर आर यस यस का सहयोगी होने का आरोप लगाकर मानसिक तौर पर कमजोर बनाने का प्रयास किया जाता है.
आज हम विश्व पटल पर भ्रष्ट देशों के सिरमौर बन कर उभरे हैं और शीर्ष स्थान तक पहुँचने के लिए चंद पायदान की ही दरकार है. पूरी दुनिया में भ्रष्टाचार के मामले में हम 87वें स्थान पर
एशिया में 16वें स्थान पर और एशिया प्रशांत क्षेत्र में चौथे स्थान पर हैं. हांगकांग की प्रमुख सलाहकार फर्म पॉलिटिकल एंड इकनॉमिक रिस्क कंसल्टेंसी लि. (पीईआरसी) ने भारत को शून्य से दस के मापक पर 8.67 अंक प्रदान किए हैं। हलाकि सर्वे में फिलीपींस (8.9), इंडोनेशिया (9.25) और कंबोडिया (9.27) को भारत से अधिक भ्रष्ट देश बताया गया है। ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल नाम कि एक अंतरराष्ट्रीय सन्स्थ ने अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोध दिवस पर दुनिया के 80 देशों केलगभग 91 हजार से अधिक लोगों से बात की है। रिपोर्ट के अनुसार भारत भ्रष्टाचार के मामले में अव्वल है।भारतअफगानिस्तान, कम्बोडिया, केमरून जैसे भ्रष्ट देशों में सबसे ऊपर है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले वर्ष भारत मेंकिसी भी काम को करवाने के लिए 54 प्रतिशत लोगों का रिश्वत का सहारा लिया था।। देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, टेक्स सहित ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जो भ्रष्टाचार से अछूता हो। देश के74 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि पिछले 3 वर्ष में रिश्वत के मामले लगातार ब़े हैं।टाइम पत्रिका ने सत्ता का गलत इस्तेमाल करने वाले शीर्ष 10 लोगों में राजा को दूसरे नंबर पर रखा है, क्योंकि उसकी वजह से सरकारी खजाने को अब तक की सबसे बड़ी चपत लगी है. वाशिंगटन के एक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ समूह ग्लोबल फाइनेंशियस इंटिग्रिटी(जीएफआई)ने द ड्राइवर्स एंड डायनामिक्स ऑफ इलिसिट फाइनेंशियल फ्लो फ्रॉम इंडिया 1948-2008’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा है कि भारत को भ्रष्टाचार के कारण 462 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। इसमें से बड़ी रकम काले धन के रूप में विदेशों में भेजी गई है। भारतीय मुद्रा में यह रकम कुल 20,556,548,000,000 या करीब 20 लाख करोड़ रुपए होती है। उल्लेखनीय हो ये आंकड़े २००८ तक के ही हैं. इनमे २००८ के बाद के घोटालों का नहीं जोड़ा गया है. स्विस बैंक एसोसिएशन की रिपोर्ट 2006 के मुताबिक स्वीस बैंकों में जमा सबसे ज्यादा रकम भारतीयों की है . स़िर्फ 1992 से लेकर अब तक घोटालों की वजह से देश की आम जनता का लगभग एक करोड़ करोड़ रुपये (10000000 रुपये) का नुक़सान हो चुका है या कहें, आम आदमी का एक करोड़ करोड़ रुपया लूटा जा चुका है.
ये तो बस मात्र वो रिपोर्ट हैं जो घोटाले के उन रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनका स्तर उच्च या मध्यम होता है. गाँव-देहात में होने वाले छोटे-छोटे घोटालों को शायद इसमें शामिल ही नहीं किया जाता. मुझे वो दिन बखूबी याद है जब जाति प्रमाणपत्र बनाने के लिए मुझ जैसे लाखों छात्रों द्वारा लेखपाल को ५० रुपये दिया जाता था जो इस प्रकार के रिपोर्ट में शायद ही शामिल किये जाते हों. ऐसा भी नहीं है की कुछ चुनिन्दा व विशेष लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. सच तो ये है की आधुनिक भारत के अधिकांश लोग भ्रष्टाचार के इस काले कारनामें में प्रत्यक्ष या अप्रयत्क्ष रूप से शामिल हैं. सिलसिलेवार भ्रष्टाचार की लंबी फेरहिस्त से भले ही जनता आश्चर्य है. लेकिन हमारे देश में घोटाला और अनियमितता कोई नई बात है. आश्चर्य हमें इस लिये होता है क्योंकि उक्त सारी घटनाएं एक साथ जनता के सामने आ रहीं है. जब की घोटालों का भारत से बहुत पुराना रिश्ता है जिन्हें जानने के बाद आप खुद ये कहेंगे की भारत में घोटाले नहीं, घोटालों में भारत है. पूरे भ्रष्ट तंत्र की नींव इतिहास में कितनी दूर तक जाती है ये जानने के लिए हमें भ्रष्ट तंत्र के इतिहास के उन पन्नो को पलटने की जरुरत पड़ेगी जिसके ज्यादातर चैप्टर कांग्रेस ने लिखी है.
जीप घोटाला (१९४८ )
जीप घोटाला आज़ाद हिंदुस्तान का पहला घोटाला था. देश अभी आज़ादी के बाद कश्मीर मसले पर पाकिस्तान से दो-दो हाथ कर चुका था कि वी.के.कष्ण मेनन पर सन 1949 में जीप घोटाले का गंभीर आरोप लग गया। तब वी के मेनन ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त थे और कश्मीर में पाकिस्तानी घुसपैठ की पष्ठभूमि में ब्रिटेन से भारतीय सेना के लिए अत्यंत जरूरी जीप और हथियार खरीदने का भार कृष्ण मेनन पर सौंपा गया था। दोनों ही खरीदों के लिए ब्रिटेन की विवादास्पद कंपनियों से तत्कालीन उच्चायुक्त मेनन ने समझौते किये. पाकिस्तानी हमले के बाद भारतीय सेना को क़रीब 4603 जीपों की जरूरत थी. उनके कहने पर रक्षा मंत्रालय ने उस वक्त 300 पाउंड प्रति जीप के हिसाब से 1500 जीपों का आदेश दे दिया, लेकिन 9 महीने तक जीपें नहीं आईं. 1949 में जाकर महज 155 जीपें मद्रास बंदरगाह पर पहुंचीं. इनमें से ज्यादातर जीपें तय मानक पर खरी नहीं उतरीं. जांच हुई और जांच कमेटी ने उन्हें सरसरी तौर पर दोषी माना।लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ. केंद्र सरकार ने 30 सितंबर 1955 को यह घोषणा कर दी कि जीप घोटाले के इस मामले को बंद कर दिया गया है। हद तो तब हो गई जब 3 फरवरी 1956 को कष्ण मेनन केंद्रीय मंत्री बना दिए गये और फिर १९५७ में रक्ष मंत्री बना दिये गए कुछ दिनों के बाद वह पद्म विभुश्ण पाने वाला पहला मलयाली बन बैठे। वी. के कष्ण मेनन के उपर डाक टिकट भी जारी किया गया। ज़ाहिर है, जीप घोटाले ने भारत को घोटालों के देश में तब्दील करने के लिए बीजारोपण तो कर ही दिया था.
साभार- गूगल
सायकल आयत घोटाला (1951)
दूसरा घोटाला साइकिल इंपोट्र्स का था. ऐसा बताया जाता है कि 1951 में जब एस ए वेंकटरमण वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सचिव थे तब उन पर ग़लत तरीक़े से एक कंपनी को साइकिल आयात करने का कोटा जारी करने का आरोप लगा और इसके बदले उन्होंने रिश्वत भी ली. उन्हें इस मामले में जेल भेज दिया गया था.
मुहम्मद सिराजुद्दीन एंड कंपनी (1956)
तीसरा घोटाला साइकिल घोटाले के ठीक 6 साल बाद हुआ. प्रजा सोशललिस्ट पार्टी के नेता सुरेन्द्र नाथ द्विवेदी को आशंका हुई की उड़ीसा के कुछ कांग्रेसी नेता व्यापारियों के काम करवा रहे थे और उनसे दलाली ले रहे थे. इस बाबत पूर्वी भारत के एक बड़े व्यवसायी मुहम्मद सिराजुद्दीन एंड कंपनी के कोलकाता और उड़ीसा स्थित दफ्तरों में छापेमारी हुई. जाँच से पता चला कि सिराजुद्दीन कई खानों का मालिक है और उसके पास से एक ऐसी डायरी मिली, जिससे साबित हो रहा था कि उसके राजनेताओं से संबंध कितने प्रगाढ़ थे। लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ. कुछ समय बाद जब यह खबर मीडिया के हाथ लगी और छपने लगी, तब तत्कालीन खान और ईंधन मंत्री केशव देव मालवीय ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने उड़ीसा के एक खान मालिक से 10,000 रुपये की दलाली ली थी. बाद में नेहरू के दबाव में मालवीय को इस्ती़फा देना पड़ा.
बीएचयू फंड घोटाला (1956)
यह आज़ाद भारत का पहला शैक्षणिक घोटाला था जिसमे तहत विश्वविद्यालय के अधकारियों पर ५०,००००० के करीब फंड के दुरुप्रयोग के आरोप लगे थे. . ध्यान रहे कि उस वक्त ५०,००००० के क्या मायने हुआ करते थे.
हरिदास मूंदड़ा घोटाला (1958)
यह एक ऐसा घोटाला था जिसने पुरे भारत को हिला कर रख दिया था. हुआ यूँ कि 1957 में फिरोज गांधी ने यह खुलासा किया कि उद्योगपति हरिदास मूंध्रा की कई कंपनियों को मदद पहुंचाने के लिए उनके शेयर भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) द्वारा 1.25 करोड़ रुपये में खरीदवाए गए. एलआईसी द्वारा शेयरों की बढ़ी हुई कीमत दी गई. जांच हुई तो उस मामले में वित्त मंत्री टी टी कृष्णामाचारी, वित्त सचिव एच एम पटेल और भारतीय जीवन बीमा निगम के अध्यक्ष दोषी पाए गए. मूंदड़ा पर 160 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप था. 180 अपराधों के मामले थे. दबाव बढ़ा तो वित्त मंत्री को पद से हटा दिया गया. मूंध्रा को 22 साल की सजा मिली. कृष्णामाचारी को तो उनके पद से हटा दिया गया.
तेजा लोन (१९६०)
१९६० में एक बिजनेसमैन धर्म तेजा ने एक शिपिंग कंपनी शुरू करने केलिए सरकार से २२ करोड़ रुपये का लोन लिया। लेकिन बाद में धनराशि को देश से बाहर भेज दिया। उद्योगपति धर्म तेजा को बिना जांच 20 करोड़ का कर्ज दिलाने का आरोप पंडित नेहरू पर था। जयंत धरमतेज को जयंत जहाजरानी कंपनी की स्थापना के ऋण के रूप में, Rs.22 करोड़ ले लियालेकिन कंपनी की स्थापना के बिना वह पैसे के साथ भाग गया. उन्हें यूरोप में गिरफ्तार किया गया और छह साल की कैद हुई।
कैरों घोटाला (1963)
1963 में पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैरों के खिला़फ कांग्रेसी नेता प्रबोध चंद्र ने आरोपपत्र पेश किया. आरोपपत्र में ये बातें शामिल थीं कि पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अनाप-शनाप धन-संपत्ति जमा किया. इसमें उनके परिवारीजन शामिल थे. मसलन, अमृतसर कोऑपरेटिव कोल्ड स्टोरेज लि., प्रकाश सिनेमा, कैरों ब्रिक सोसायटी, मुकुट हाउस, नेशनल मोटर्स अमृतसर, नीलम सिनेमा चंडीगढ़, कैपिटल सिनेमा जैसी संपत्तियों पर प्रताप सिंह कैरों के रिश्तेदारों का मालिकाना हक़ था. जब जांच हुई तो रिपोर्ट में कहा गया कि कैरों के पुत्र एवं पत्नी ने पैसा कमाया है. लेकिन इस सब के लिए प्रताप सिंह कैरों को सा़फ-सा़फ बरी कर दिया गया.
पटनायक घोटाला (1965)
उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक पर यह आरोप लगा कि उन्होंने अपनी ही एक निजी कंपनी कलिंगा ट्यूब्स को एक सरकारी ठेका दिया. इस आरोप के बाद उन्हें इस्ती़फा देने पर मजबूर होना प़डा.
नागरवाला कांड (1971)
यह दिल्ली के पार्लियामेंट स्ट्रीट स्थित स्टेट बैंक शाखा में ला खों रुपय मांगने का मामला था जिसमें इंदिरा गांधी का नाम भी शामिल था. हुआ यूँ की 1971 की 24 मई को दिल्ली में एसबीआई की संसद मार्ग शाखा के कैशियर के पास एक फोन आया. फोन पर उक्त कैशियर से बांग्लादेश के एक गुप्त मिशन के लिए 60 लाख रुपये की मांग की गई और कहा गया कि इसकी रसीद प्रधानमंत्री कार्यालय से ले जाएं. यह खबर आई कि फोन पर सुनी जाने वाली आवाज़ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पी एन हक्सर की थी. बाद में पता चला कि यह कोई और आदमी था. रुपये लेने वाले और नकली आवाज निकाल कर रुपये की मांग करने वाले व्यक्ति रुस्तम सोहराबनागरवाला को गिरफ्तार कर लिया गया. 1972 में संदेहास्पद हालात में नागरवाला की मृत्यु हो गई. उसकी मौत के साथ ही मामले की असलियत भी जनता के सामने नहीं आ सकी. इस मामले को रफा-दफा कर दिया गया.
मारुति घोटाला (1974)
मारुति कंपनी बनने से पहले यहां एक घोटाला हुआ जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम आया। मामले में पेसेंजर कार बनाने का लाइसेंस देने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी।
देवराज अर्स (१९७५-१९७७)
आपातकाल के दौरान कर्नाटक के मुख्यमंत्री देवराज अर्स और उनके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के क़रीब 25 आरोप लगे. उन पर 20 एकड़ जमीन अपने दामाद को आवंटित करने, अपने परिवार को बेंगलुरू की पॉश कालोनी में चार कीमती भूखंड आवंटित करने, अपने भाई को राज्य फिल्मोद्योग का प्रभारी बनाने आदि सगे-संबंधियों को अवैध तरीकों से फायदा पहुंचाने के कई आरोप लगे, लेकिन मामला सामने आने के बाद भी कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ.
कुओं आइल डील (1976)
इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने 3 लाख टन शोधित तेल और 5 लाख टन हाई स्पीड डीजल की खरीद के लिए टेंडर निकाला. यह टेंडर हरीश जैन को मिला. जैन की पहुंच राजनैतिक गलियारों तक थी. इस सौदे में 9 करोड़ रुपये से ज़्यादा की हेराफेरी का आरोप लगा. जांच भी हुई. लेकिन कहा जाता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय से ही इस मामले से जुड़ी फाइलें गुम हो गईं. तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री पी सी सेठी को इस्ती़फा देना पड़ा. बाद में उन्हें फिर से मंत्री बना दिया गया.
अंतुले ट्रस्ट (1981)
1982 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ए आर अंतुले का नाम एक घोटाले में सामने आया. उन पर आरोप यह था कि उन्होंने इंदिरा गांधी प्रतिभा प्रतिष्ठान, संजय गांधी निराधार योजना, स्वावलंबन योजना आदि ट्रस्ट के लिए पैसा इकट्ठा किया था. जो लोग, खासकर बड़े व्यापारी या मिल मालिक ट्रस्ट को पैसा देते थे, उन्हें सीमेंट का कोटा दिया जाता था. ऐसे लोगों के लिए नियम-क़ानून में ढील दे दी जाती थी. ऐसे लोगों के लिए नियम-क़ानून का कोई मतलब नहीं होता था. इस मामले में मुख्यमंत्री पद से ए आर अंतुले को हटना पड़ा. इसके बाद इस दशक के सबसे हाई प्रोफाइल घोटाले से लोगों का परिचय हुआ.
चुरहट लॉटरी कांड (1982)
अर्जुन सिंह के गृह नगर में चुरहट बाल कल्याण समिति नाम की एक संस्था अपने आथिर्क साधन बढ़ाने के लिए लॉटरी भी बेचने लगी। इसमें शामिल लोगों पर 4 करोड़ 10 लाख रुपये खाने का आरोप है। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अर्जुन सिंह पर भी इस मामले में शामिल होने के आरोप लगे। इसकी जांच का नतीजा भी अब तक नहीं निकल सका है।
एचडीडबल्यू सबमरीन घोटाला ( 1986)
४२० करोड़ के इस घोटाले में जर्मनी की पनडुब्बी निर्मित करने वाले कंपनी एचडीडब्लू को काली सूची में डाल दिया गया। मामला था कि उसने २० करोड़ रुपये बैतोर कमिशन दिए हैं। २००५ में केस बंद कर दिया गया। फैसला एचडीडब्लू के पक्ष में रहा।
बोफोर्स घोटाला (1987)
सन् १९८७ में यह बात सामने आयी थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी ब ोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने क े लिये 80 लाख डालर की दलाली चु कायी थी। उस समय केन्द्र में का ंग्रेस की सरकार थी, जिसके प् रधानमंत्री राजीव गांधी थे। स् वीडन की रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया। इसे ही बोफोर्स घोटाला या बोफोर्स काण्ड के नाम से जाना जाता है। आरोप आरोप था कि राजीव गांधी पर िवार के नजदीकी बताये जाने वाले इतालवी व्यापारी ओत्तावियो क् वात्रोक्की ने इस मामले में बि चौलिये की भूमिका अदा की, जिसके बदले में उसे दलाली की रकम का बड़ा हिस्सा मिला। कुल चार सौ ब ोफोर्स तोपों की खरीद का सौदा 1.3 अरब डालर का था। आरोप है कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर् स ने भारत के साथ सौदे के लिए 1.42 करोड़ डालर की रिश्वत बां टी थी। इतिहास काफी समय तक राजी व गांधी का नाम भी इस मामले के अभियुक्तों की सूची में शामिल र हा लेकिन उनकी मौत के बाद नाम फ ाइल से हटा दिया गया। सीबीआई को इस मामले की जांच सौंपी गयी ले किन सरकारें बदलने पर सीबीआई की जांच की दिशा भी लगातार बदलती रही। एक दौर था, जब जोगिन्दर सि ंह सीबीआई चीफ थे तो एजेंसी स् वीडन से महत्वपूर्ण दस्तावेज ला ने में सफल हो गयी थी। जोगिन्दर सिंह ने तब दावा किया था कि के स सुलझा लिया गया है। बस, देरी है तो क्वात्रोक्की को प्रत्यर् पण कर भारत लाकर अदालत में पेश करने की। उनके हटने के बाद सीबी आई की चाल ही बदल गयी। इस बीच क ई ऐसे दांवपेंच खेले गये कि क् वात्रोक्की को राहत मिलती गयी। दिल्ली की एक अदालत ने हिंदुजा बंधुओं को रिहा किया तो सीबीआई ने लंदन की अदालत से कह दिया कि क्वात्रोक्की के खिलाफ कोई सबू त ही नहीं हैं। अदालत ने क्वात् रोक्की के सील खातों को खोलने क े आदेश जारी कर दिये। नतीजतन क् वात्रोक्की ने रातों-रात उन खा तों से पैसा निकाल लिया। 2007 म ें रेड कार्नर नोटिस के बल पर ह ी क्वात्रोक्की को अर्जेन्टिना पुलिस ने गिरफ्तार किया। वह बीस -पच्चीस दिन तक पुलिस की हिरासत में रहा। सीबीआई ने काफी समय ब ाद इसका खुलासा किया। सीबीआई ने उसके प्रत्यर्पण के लिए वहां क ी कोर्ट में काफी देर से अर्जी दाखिल की। तकनीकी आधार पर उस अर ्जी को खारिज कर दिया गया, लेकि न सीबीआई ने उसके खिलाफ वहां की ऊंची अदालत में जाना मुनासिब न हीं समझा। नतीजतन क्वात्रोक्की जमानत पर रिहा होकर अपने देश इट ली चला गया।
सेंट किट्स घोटाला (1989)
ऐसा माना जाता है की सेंट किट्स घोटाला बेफोर्स की ही उपज है. । उसकी शुरुआत कुछ इस प्रकार हुई कि जब बोफर्स का भंडा फूटा तो प्रधान मंत्री सहित अनेक अन्य बड़ी हस्तियों की चमड़ी बचाने के प्रयत्न आरंभ हुए। इस प्रयास में वरिष्ठ कांग्रेस नेता नरसिंह राव की मुख्य भूमिका रही। मामले को दबाने के इस प्रयास को ही सेंट किट्स घोटाला कहा जाता है। बोफर्स की बातें तब सामने आईं जब राजीव गांधी के चुनाव हारने पर विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधान मंत्री बने। विश्वनाथ प्रताप सिंह का मुंह बंद करने के लिए नरसिंह राव ने चंद्रस्वामी की सहायता से जाली दस्तावेज तैयार करके यह सिद्ध करने की कोशिश की कि विश्वनाथ प्रताप सिंह के बेटे ने स्विस बैंकों में कई करोड़ रुपए जमा करके रखे हैं। बाद में पता चला कि जिन दस्तावेजों के सहारे वी पी सिंह को फंसाने की कोशिश की गई थी, उन पर अंग्रेजी में हस्ताक्षर थे, जबकि सच्चाई यह थी कि वी पी सिंह किसी भी सरकारी दस्तावेज पर अंग्रेजी में हस्ताक्षर नहीं करते थे. नतीजतन, वी पी सिंह इस मामले में निर्दोष साबित हुए.
जैन हवाला डायरी कांड (1991)
1991 में सीबीआई ने कई हवाला ऑपरेटरों के ठिकानों पर छापे मारे. इस छापे में एस के जैन की डायरी बरामद हुई. इस तरह यह घोटाला 1996 में सामने आया. इस घोटाले में 18 मिलियन डॉलर घूस के रूप में देने का मामला सामने आया, जो कि बड़े-बड़े राजनेताओं को दी गई थी. आरोपियों में से एक लालकृष्ण आडवाणी भी थे, जो उस समय नेता विपक्ष थे. इस घोटाले से पहली बार यह बात सामने आई कि सत्ताशीन ही नहीं, बल्कि विपक्ष के नेता भी चारों ओर से पैसा लूटने में लगे हैं. दिलचस्प बात यह थी कि यह पैसा कश्मीरी आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन को गया था. कई नामों के खुलासे हुए, लेकिन सीबीआई किसी के भी खिला़फ सबूत नहीं जुटा सकी.
बाम्बे स्टाक एक्सचेंज घोटाला (1992)
वर्ष 1992 में शेयर बाजार में घोटाले का तहलका मचाने वाले शेयर दलाल हर्षद मेहता पर लगे आरोपों के बाद इस जेपीसी का गठन किया गया था। आरोप था कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी मारुति उद्योग लिमिटेड के पैसों का मेहता ने दुरुपयोग किया। मेहता के वायदा सौदों का भुगतान न कर पाने की वजह से सेंसेक्स में 570 अंकों की गिरावट आई थी। लेकिन करीब पांच साल बाद 1997 में ही जाकर विशेष अदालत में प्रतिभूति घोटाले से जुड़े मामलों की सुनवाई शुरू हो सकी और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने करीब 34 आरोप लगाए। सीबीआई ने करीब 72 आपराधिक मामले दर्ज करने के अलावा 600 दीवानी मामले चलाए। लेकिन इनमें से महज 4 मामलों में ही आरोप पत्र दाखिल हो पाए। सितंबर 1999 में मेहता को मारुति उद्योग के साथ धोखाधड़ी के आरोप में चार साल की सजा हुई। लेकिन जेपीसी की सिफारिशें न तो पूरी तरह से स्वीकार की गईं और न ही पूरी तरह से लागू हो पाईं।
सिक्योरिटी स्कैम (1992)
१९९२ में हर्षद मेहता ने धोखाधाड़ी से बैंको का पैसा स्टॉक मार्केट में निवेश कर दिया, जिससे स्टॉक मार्केट को करीब ५००० करोड़ रुपये का घाटा हुआ।
इन्डियन बैंक घोटाला (1992)
१९९२ में बैंक से छोटे कॉरपोरेट और एक्सपोटर्स ने बैंक से करीब १३००० करोड़ रुपये उधार लिए। ये धनराशि उन्होंने कभी नहीं लौटाई। उस वक्त बैंक के चेयरमैन एम. गोपालाकृष्णन थे।
तांसी भूमि घोटाला (1992 )
1992 में जयललिता पर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहते हुए तमिलनाडु स्माल इंडस्ट्रीज कारपोरेशन की जमीन औने-पौने दामों में जया पब्लिकेशन को आवंटित कराने का आरोप लगा। आरोपों की जांच के बाद स्थानीय पुलिस ने 1996 में जयललिता और उनकी सहेली शशिकला समेत छह लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। इन पर राज्य को साढ़े तीन करोड़ रुपये के नुकसान का आरोप लगा। बाद में स्थानीय अदालत ने इन सभी को आरोपी बनाते हुए कानूनी कार्रवाई शुरू की और 2000 में जयललिता को दोषी करार देते हुए तीन साल की सजा सुना दी। 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जयललिता को पूरी तरह से सभी आरोपों से बरी कर दिया। इस घोटाले के अलावा इनके खिलाफ लगभग आधा दर्जन दूसरे केस भी दर्ज किए गए थे, लेकिन सभी की नियति तांसी जैसी ही हुईं।
चीनी आयत (1994)
नरसिम्हाराव के समय झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शैलेंद्र महतो ने यह खुलासा किया कि उन्हें और उनके तीन सांसद साथियों को 30-30 लाख रुपये दिए गए, ताकि नरसिम्हाराव की सरकार को समर्थन देकर बचाया जा सके. यह घटना 1993 की है. इस मामले में शिबू सोरेन को जेल भी जाना पड़ा. 1994 में खाद्य आपूर्ति मंत्री कल्पनाथ राय ने बा़जार भाव से भी महंगी दर पर चीनी आयात का फैसला लिया. यानी चीनी घोटाला. इस कारण सरकार को 650 करोड़ रुपये का चूना लगा. अंतत: उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा. उन्हें इस मामले में जेल भी जाना पड़ा.
जेएमएम सांसद घुसकंड (1995)
जुलाई 1993 में पीवी नरसिंह राव सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव 14 मतों से खारिज हो गया। आरोप लगा कि सरकार ने अपने पक्ष में वोट करने के लिए झामुमो के चार सांसद समेत कई सांसदों को लाखों रुपये की रिश्वत दी थी। नरसिंह राव के सत्ता से बाहर हो जाने के बाद सीबीआइ ने इस मामले में राव समेत कई आरोपियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की। लगभग आठ महीने में जांच पूरी कर सीबीआइ ने सांसदों की खरीद फरोख्त के लिए नरसिंह राव, बूटा सिंह, सतीश शर्मा, शिबू सोरेन समेत कुल 20 हाईप्रोफाइल आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। लेकिन 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में रिश्वत लेने वाले सभी नौ सांसदों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगा दी। 2000 में स्थानीय अदालत ने फैसले में केवल दो आरोपियों नरसिंह राव और बूटा सिंह को दोषी करार दिया। लेकिन 2002 में दिल्ली हाइकोर्ट ने इन दोनों को भी आरोपों से बरी कर दिया।
जूता घोटाला (1995)
बहरहाल, नब्बे के दशक में घोटाले भी अजीबोग़रीब शक्ल लेने लगे. जैसे जूता घोटाला. सोहिन दया नामक एक व्यापारी ने मेट्रो शूज के रफीक तेजानी और मिलानो शूज के किशोर सिगनापुरकर के साथ मिलकर कई सारी फर्जी चमड़ा कोऑपरेटिव सोसाइटियां बनाईं और सरकारी धन लूटा. 1995 में इसका खुलासा हुआ और बहुत सारे सरकारी अफसर, महाराष्ट्र स्टेट फाइनेंस कार्पोरेशन के अफसर, सिटी बैंक, बैंक ऑफ ओमान, देना बैंक आदि भी इस मामले में लिप्त पाए गए. इन सबके खिला़फ आरोपपत्र दाखिल किया गया, लेकिन कोई नतीजा सामने नहीं आ सका.
यूरिया घोटाला (1996)
1996 के यूरिया घोटाले में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्ह राव के पुत्र पीवी प्रभाकर राव का नाम सामने आया। बात 1996 की है जब देश में यूरिया की आपूर्ति करने के लिए एनएफएल यूरिया की 2 लाख टन की वैश्विक निविदा मंगाई गई थी। इस सौदे में बिना किसी बैंक गारंटी के कंपनी को 133 करोड़ का आबंटन कर दिया गया। नेशनल फर्टिलाइजर के एमडी सी एस रामकृष्णन ने कई अन्य व्यापारियों, जो कि नरसिम्हाराव के नजदीकी थे, के साथ मिलकर दो लाख टन यूरिया आयात करने के मामले में सरकार को 133 करोड़ रुपये का चूना लगा दिया सीबीआई को शक था कि इन सब में प्रभाकर का हाथ है बावजूद इसके प्रधानमंत्री पिता के चलते प्रभाकर पर किसी ने हाथ तक नहीं डाला।
सुखराम ( 1996 )
यह एकमात्र मामला है जिसमें हाईप्रोफाइल आरोपी को सजा हुई है। 1996 में सीबीआइ ने तत्कालीन सूचना मंत्री सुखराम के सरकारी आवास पर छापा मारकर 2.45 करोड़ रुपये नकद बरामद किया। उसी दिन हिमाचल प्रदेश के मंडी स्थित उनके घर पर छापे में सीबीआइ को 1.16 करोड़ रुपये और मिले। इसके आधार पर सीबीआइ ने आय से अधिक संपत्ति का केस दर्ज कर जांच शुरू की। सुखराम के खिलाफ दिल्ली की तीसहजारी अदालत में 1997 में चार्जशीट दाखिल कर दी। लगभग चार करोड़ की नकदी की बरामदगी के बावजूद अदालत में 12 साल तक सुनवाई चलती रही और अंतत: 2009 में उन्हें तीन साल की सजा सुनाई गई। वैसे सुखराम ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की है और वे फिलहाल जमानत पर बाहर हैं।
चारा घोटाला (1996)
1991 में लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद पशुपालन विभाग में हुए 950 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले की जांच पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद 1996 में शुरू हुई। इस मामले में सीबीआइ ने 64 अलग-अलग मामले दर्ज किए। इन सभी की जांच कर 2003- 2004 में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी। इनमें 37 मुकदमों में अदालत अब तक 350 से अधिक आरोपियों को सजा सुना चुकी है। हालांकि जिस मामले में लालू आरोपी हैं, उसमें अभी तक अदालत में सुनवाई चल रही है।
पेट्रोल पंप आवंटन घोटाला ( 1997)
पीवी नरसिंह राव सरकार में पेट् रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री रहे सतीश शर्मा पर पेट्रोल पंप आवंटन का आरोप लगा। 1997 में स ीबीआइ ने शर्मा पर 15 केस दर्ज किए। लेकिन सीबीआइ को शर्मा के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के ल िए गृह मंत्रालय से जरूरी अनु मति नहीं मिली। इसके आधार पर नव ंबर 2004 में सीबीआइ अदालत से स भी 15 मामलों को बंद करने की अर ्जी लगाई। सतीश शर्मा पेट्रोल प ंप आवंटन घोटाले के आरोपों से ब ेदाग बच निकले।
मैच फिक्सिंग (2000)
जेंटलमैन स्पोट्र्स यानी क्रिकेट में मैच फिक्सिंग का धब्बा पहली बार भारतीय खिलाड़ियों पर लगा. इसमें प्रमुख रूप से अज़हरुद्दीन और अजय जडेजा का नाम सामने आया. अजय शर्मा और अजहर पर आजीवन प्रतिबंध लगा तो जडेजा और मनोज प्रभाकर पर पांच साल का प्रतिबंध.
तहलका कांड (2001)
तब तक देश 21वीं सदी में पहुंच चुका था. अब घोटाले कैमरे पर भी होने लगे और सीधे दुनिया ने इसे होते हुए देखा. इसका एक उदाहरण तहलका कांड है. एक मीडिया हाउस तहलका के स्टिंग ऑपरेशन ने यह खुलासा किया कि कैसे कुछ वरिष्ठ नेता रक्षा समझौते में गड़बड़ी करते हैं. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को रिश्वत लेते हुए लोगों ने टेलीविजन और अ़खबारों में देखा. इस घोटाले में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज और भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल सुशील कुमार का नाम भी सामने आया. इस मामले में अटल बिहारी वाजपेयी ने जॉर्ज फर्नांडीज का इस्ती़फा मंजूर करने से इंकार कर दिया. हालांकि बाद में जॉर्ज ने इस्ती़फा दे दिया.
बराक मिसाइल घोटाला (2001)
बराक मिसाइल रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार का एक और नमूना बराक मिसाइल की खरीदारी में देखने को मिला. इसे इज़रायल से खरीदा जाना था, जिसकी क़ीमत लगभग 270 मिलियन डॉलर थी. इस सौदे पर डीआरडीपी के तत्कालीन अध्यक्ष ए पी जे अब्दुल कलाम ने भी आपत्ति दर्ज कराई थी. फिर भी यह सौदा हुआ. इस मामले में एफआईआर भी दर्ज हुई. एफआईआर में समता पार्टी के पूर्व कोषाध्यक्ष आर के जैन की गिरफ्तारी भी हुई. जॉर्ज फर्नांडीस, जया जेटली और नौसेना के एक पूर्व अधिकारी सुरेश नंदा के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज हुई. सुरेश नंदा पूर्व नौसेना प्रमुख एस एम नंदा के बेटे हैं. जांच जारी है. अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है.
यूटीआई घोटाला (२००३)
शेयर मार्केट से निकल कर ये घोटाले बैंकिंग सेक्टर में भी घुस गए. यूटीआई घोटाला. 48 हजार करोड़ रुपये का यह घोटाला पूर्व यूटीआई चेयरमैन पी एस सुब्रमण्यम और दो निदेशकों एम एम कपूर और एस के बासु ने मिलकर किया. ये सभी गिरफ्तार हुए, लेकिन सज़ा किसी को नहीं मिली.
स्टंप पेपर घोटाला (2003)
वर्ष २००३ में ३० हजार करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया . इसके पीछे अब्दुल करीम तेलगी को मास्टर माइंड बताया गया. इस मामले में उच्च पुलिस अधिकारी से लेकर राजनेता तक शामिल थे. तेलगी की गिरफ्तारी तो ज़रूर हुई, लेकिन इस घोटाले के कुछ और अहम खिलाड़ी साफ बच निकलने में अब तक कामयाब हैं.
ताज कॉरिडोर. (2003)
इसी कड़ी में एक और घोटाला सामने आया. ताज कॉरिडोर. 175 करोड़ रुपये के इस घोटाले में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती पर लगातार तलवार लटकी रही और अब भी लटकी हुई है. सीबीआई के पास यह मामला है, लेकिन राजनीतिक वजहों से कभी जांच की गति तेज हो जाती है तो कभी मंद. कुल मिलाकर इस घोटाले के आरोपी अपने अंजाम तक पहुंचेंगे या नहीं, कहना मुश्किल है
छत्तीसगढ़ विधायक खरीद कांड ( 2003)
दिसंबर 2003 में छत्तीसगढ़ के त त्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी पर भाजपा विधायकों को खरीदने का आरोप लगा। सीबीआइ ने विधायकों को दिए गए पैसे के स्नोत को भी ढूंढ निकाला। फारेंसिक लेबोरे टरी की रिपोर्ट में टेलीफोन की बातचीत में आवाज और समर्थन पत्र पर हस्ताक्षर के रूप में मामले में अजीत जोगी के शामिल होने क े सबूत भी मिल गए। अकाट्य सबूतो ं के बावजूद भी सीबीआइ अजीत जो गी के खिलाफ आठ साल बाद भी चार् जशीट दाखिल नहीं की है।
तेल के बदले अनाज (2005)
तेल के बदले अनाज. वोल्कर रिपोर्ट के आधार पर यह बात सामने आई कि तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपने बेटे को तेल का ठेका दिलाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया. उन्हें इस्ती़फा देना पड़ा, हालांकि सरकार ने उन्हें बिना विभाग का मंत्री बनाए रखा. एक के बाद एक नेता घोटालों के सरताज बनते जा रहे थे.
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सत्यम घोटाला (2008)
अब भला कार्पोरेट जगत इस बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे क्यों रहता. अब सामने आया सत्यम घोटाला. कार्पोरेट जगत का शायद सबसे बड़ा घोटाला. 14 हज़ार करोड़ रुपये के इस घोटाले में सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज के मालिक राम लिंग राजू का नाम आया. राजू ने इस्ती़फा दिया और वह अभी भी जेल में हैं. मुकदमा चल रहा है.
मधु कोड़ा (2009)
राजनैतिक घोटालों की कभी न खत्म होने वाली श्रृंखला में एक और नाम शामिल हुआ. मधु कोड़ा का. मुख्यमंत्री रहते हुए कोई अरबों की कमाई कर सकता है, यह साबित किया झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने. 4 हज़ार करोड़ से भी ज्यादा की काली कमाई की कोड़ा ने. बाद में इन पैसों को विदेश भेजकर जमा किया और विदेशों में निवेश किया. इस मामले में केस दर्ज हुआ. कोड़ा फिलहाल जेल में हैं. जांच चल रही है.
खाद्यान्न घोटाला (2010)
उत्तर प्रदेश में करीब 35,000 करोड़ रुपये का खाद्यान्न घोटाला २०१० में उजागर हुआ। दरअसल, यह अंत्योदय, अन्नपूर्णा और मिड डे मील जैसी खाद्य योजनाओं के तहत आने वाले अनाज को बेचने का है। यह घोटाला 2001 से 2007 के बीच हुआ था। राज्य में इन योजनाओं के तहत आवंटित चावल की भी कालाबाजारी की गई। कुछ अनुमानों के मुताबिक इस तरह 2 लाख करोड़ रुपये के वारे-न्यारे करने का आरोप है। करीब 2 लाख करोड़ का एस बैंड घोटाला इनमें सबसे बड़ा घोटाला माना गया है।
हाउसिंग लोन स्कैम (२०१०)
: सीबीआई ने नवंबर 2010 में हाउसिंग स्कैम का भी पर्दाफाश किया। सीबीआई ने पूरे घोटाले को करीब 1000 करोड़ रुपए का बताया। इस घोटाले के आरोप में एलआईसी हाउसिंग फायनेंस से सीईओ रामचंद्रन नायर के अलावा विभिन्न बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के कई अधिकारी गिरफ्तार किए गए। इन अधिकारियों में एलआईसी में सचिव (निवेश) नरेश के चोपड़ा, बैंक ऑफ इंडिया के जनरल मैनेजर आरएल तायल, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के डायरेक्टर मनिंदर सिंह जौहर, पंजाब नेशनल बैंक के डीजीएम वैंकोबा गुजाल औऱ मनी अफेयर्स के सीएमडी राजेश शर्मा गिरफ्तार किए गए।
एस बैंड घोटाला (2010)
एस बैंड स्पेक्ट्रम घोटाला करीब 2 लाख करोड़ रुपयों का बताया जा रहा है। आरोप है कि इसरो की कारोबारी ईकाई अंतरिक्ष ने निजी कंपनी देवास मल्टिमीडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ दुर्लभ एस बैंड स्पेक्ट्रम बेचने का समझौता किया। बिना नीलामी के कंपनी को स्पेक्ट्रम देने का फैसला हो गया। कंपनी के निदेशक डॉ. एमजी चंद्रशेखर हैं, जो पहले इसरो में ही वैज्ञानिक थे। अब डील रद करने की बात हो रही है और अंतरिक्ष के चेयरमैन को भी हटाया जा रहा है। पूर्व कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी की अध्यक्षता में मामले की जांच के लिए समिति भी बन गई है। इस मामले में कई कंपनियां संदेह के दायरे में थीं। ये कंपनियां इन अधिकारियों को रिश्वत देकर करोड़ों रुपयों के कार्पोरेट लोन स्वीकृत करवा लेते थे। जो कंपनियां संदेह के दायरे में हैं उनमें लवासा कार्पोरेशन, ऑवेराय रिएलिटी, आशापुरा माइनकैम, सुजलोन इनर्जी लिमिटेड, डीबी रिएलिटी, एम्मार एमजीएफ, कुमार डेवलपर्स आदि हैं।
आदर्श घोटाला (2010)
यह घोटाला पुराने मुंबई "टाउन" के सम्भ्रांत कोलाबा इलाके में समुद्र पाटकर विकसित "बैकबे रेक्लमेसन एरिया" के ब्लॉक 6 में 6490 वर्ग मीटर के भूखंड पर कायदे-कानून को ठेंगा दिखाकर आदर्श कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी नाम की 31 मंजिली इमारत बनाने का है। करगिल में शहीद हुए जवानों के परिजनों को देने के लिए मुंबई में बनाई गयी आदर्श सोसाइटी के करोड़ों के फ़्लैट लाखों के भाव में मंत्रियों ,संतरियों सहित सैन्य अधिकारियों और उनके रिश्तेदारों के नाम कर दिए गये हैं | इन फ्लैटों की कीमत 60 लाख रुपये तक है। मौजूदा बाजार मूल्यों के अनुसार इनकी कीमत आठ करोड़ रुपये तक है।
मामले में मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण का नाम आने पर उतना अचम्भा नहीं हुआ जितना कि तीन पूर्व सेना प्रमुखों – जनरल दीपक कपूर, जनरल एन सी विज और एडमिरल माधवेंद्र सिंह के नाम आने से झटका लगा | ईमानदार आर्मी के प्रमुखों का यह हाल शर्मनाक है | नेताओं की बात क्या करें ? सडकों का अलकतरा पीने वाले , पशुओं का चारा तक डकार जाने वाले , शहीदों के ताबूतों और तोपों की दलाली करने वाले नेताओं को तो देख ही चुके हैं ! इसीलिए शहीदों की बेवाओं को बेघर करने वाले मुख्यमंत्री -मंत्री से और क्या उम्मीद की जा सकती है ?
CWG घोटाला (2010)
कॉमनवेल्थ खेल के शुरू होने से पहले ही करप्शन ने इसे अपनी गिरफ्त में ले लिया. बताया जाता है की यह घोटाला ७०,००० करोड़ का था. सीवीसी की रिपोर्ट के अनुसार कॉमनवेल्थ खेल में काफी अनियमिताएं पायीं गयी. रिपोर्ट में कहा गया कि कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए तैयार किए जा रहे प्रोजेक्ट्स की बोली में मनमानी वाला रवैया अपनाया गया। बोली में सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए उनको ठेके दिए गए। दूसरा सबसे ज्यादा घपला किराए पर ली जाने वाली चीजों के नाम पर हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक गेम्स की आयोजन समिति ने जिन मेडिकल उपकरणों को खरीदा उनमें बड़े पैमाने पर धांधली हुई है। समिति ने जिन छतरियों, मेज, पानी के जग, एयरकंडीशन, कुर्सियों को किराए पर लिया उनकी कीमत किराए से आठ से दस गुना कम है।
समिति ने टेंडर की प्रक्रिया को पूरा किए बिना ही लंदन की एक बेनामी कंपनी को 4.50 लाख पाउंड की रकम सौंप दी और इसके लिए कोई दस्तावेजी रिकॉर्ड भी नहीं रखा। समिति की ओर से कहा गया कि लंदन स्थित उच्चायोग की सिफारिश पर कंपनी को पैसा ट्रांसफर किया गया था। हालांकि उच्चायोग ने समिति के इन आरोपों को खारिज कर दिया।
आयोजन समिति ने जिस ट्रेड मिल को करीब 10 लाख रूपए में किराए पर लिया था उसकी कीमत दिल्ली के स्थानीय बाजार में सिर्फ 4 लाख रूपए है।
कॉमनवेल्थ खेलों के लिए टेनिस टर्फ के निर्माण का ठेका आयोजन समिति के कोषाध्यक्ष अनिल खन्ना के बेटे को दे दिया गया। आर के खन्ना टेनिस स्टेडियम में 14 सिंथेटिक टर्फ तैयार करने का टेंडर अनिल खन्ना के बेटे आदित्य की कंपनी रिबाउंड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया था। लेकिन कंपनी ने गुणवत्ता की परवाह किए बगैर आनन फानन में ही निमार्ण कार्य पूरा करवा दिया। आदित्य ऑस्ट्रेलियन फर्म रिबाउंड ऎस की भारतीय शाखा रिबाउंड फर्म इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ हैं।
टेनिस टर्फ के निर्माण में आए घोटाले के बाद कॉमनवेल्थ के लिए लॉन बॉल टर्फ खरीदे जाने में भी गड़बडियां सामने आई हैं। बताया जा रहा है कि लॉन बॉल टर्फ के लिए तय कीमत से पांच गुना अधिक कीमत चुकाई गई है। सूत्रों के अनुसार एक लॉन बॉल टर्फ के लिए निर्माण कंपनी को करीब 1.35 करोड़ रूपए चुकाए गए जबकि यह मात्र 27 लाख रूपए में तैयार हो सकता था।
2जी स्पेक्ट्रम घोटाला: (2010)
१७६ अरब के इस टेलीकॉम घोटाले को भारत का सबसे बड़े घोटाले में गिना जाता है, जिसमें गलत तरीके से गलत लोगों को 2जी के लाइसेंस दिए गए थे .कैग अर्थात काम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार पूर्व संचार मंत्री ए राजा ने 2 जी स्पैक्ट्रम के आवंटन में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और वित्त मंत्रालय के सुझावों की पूरी तरह से अनदेखी की। रिपोर्ट के अनुसार लाइसेंस के आवंटन में दूरसंचार मंत्रालय ने अपने ही तय नियमों का उल्लंघन किया। आवंटित किए गए 122 लाइसेंस में 85 को कैग की रिपोर्ट में अयोग्य पाया गया।
इन सभी अनियमितताओं की वजह से दूरसंचार मंत्रालय को 1.76 लाख करोड़ का अनुमानित नुकसान हुआ। लाइसेंस के आवंटन में पहले आओ पहले पाओ नीति का पालन नहीं किया गया। कई कंपनियों को लाइसेंस फर्जी दस्तावेजों के आधार पर और बहुत कम दामों पर दिए गए। लाइसेंस लेने वाली कुछ कंपनियां ऐसी हैं जिन्हें लाइसेंस के आवंटन के कुछ दिन पहले ही बनाया गया था। भारत के पूर्व टेलीकॉम मंत्री और कांग्रेस की सहयोगी पार्टी डीएमके के ए राजा को इस मामले में प्रमुख आरोपी बनाया गया है और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है. इसी मामले में डीएमके प्रमुख करुणानिधि की बेटी कनिमोड़ी को भी गिरफ्तार कर हिरासत में डाल दिया गया है.
हाल ही में 2जी घोटाले के मामले में तिहाड़ जेल में बंद ए राजा ने दावा किया है कि भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम भी टेलीकॉम के 2जी घोटाले में शामिल हैं.
घपलों-घोटालों की ये सूची तो मात्र एक नमूना है. गिनने बैठो तो इतनी बड़ी सूची बन जाएगी कि उसका दूसरा सिरा ही नहीं मिलेगा . उत्तरप्रदेश में पुलिस भर्ती घोटाला, नोएडा का जमीन घोटाला, गाजियाबाद के नजारत का पीएफ घोटाला, दिल्ली में एमसीडी में सैलरी घोटाला, सेल्स टैक्स विभाग के मशहूर स्टिंग ऑपरेशन के अलावा सेना में जमीन की हेराफेरी, क्रिकेट में आईपीएल घोटाला, अनंतनाग ट्रांसपोर्ट सब ्सिडी स्कैम, एयरबस स्कैंडल, ब ैंगलोर-मैसूर इन्फ्रास्ट्रक्चर, संचार घोटाला , लखुभाई पाठक पेपर स्कैम,ताबूत घोटाला आदि कुछ ऐसे घोटाले हैं जो ये साबित करने के लिए काफी हैं कि भारत में घोटाले नहीं बल्कि घोटालें में भारत है.
2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला अभी ठंडा भी नहीं हुआ है कि 43 हजार करोड़ का होमलोन घोटाला सामने आ गया. हमारा लोकतंत्र और गणतंत्र पूरी तरह लूटतंत्र में तब्दील होता हो चुका है. कार्यपालिका और विधायिका से लोगों का विश्वास उठ चुका है. कुछ हद तक मीडिया और न्यायपालिका पर विश्वास बना हुआ था जिसे नीरा राडिया टैप कांड और पत्रकारिता के नाम पर दलाली करने वाले कुछ पत्रकारों ने तोड़ दिया. हाल ही में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन के दामादों की संपत्तियों के संबंध में जो खुलासे हुए हैं, उससे तो देशवासी हिल गए हैं। जिस समय बालकृष्णन पद पर थे, उस समय उनके दामादों पर लक्ष्मी की बरसात हो रही थी। उन्होंने आय से अधिक संपत्ति अर्जित की और कई जमीनों के सौदे किए।
जनता के पैसों को अपने बाप की जागीर समझ कर लूटने वालों के खिलाफ क्या होगा ? इस सवाल का जवाब जानने के लिया जब लोगों से बातचीत किया गया तो ज्यादातर लोगों का मानना था कि इन लुटेरों का कुछ नहीं होने वाला है. ये लोग नैतिकता के नाम पर ढोंगी इस्तीफे की पेशकश करेंगे और पार्टी को ज्यादा खतरा महसूस होगा तो ये इस्तीफे मंजूर हो जायेंगे वरना इस्तीफा बैरंग वापस हो जायेगा ! घोटालों में शामिल छोटी मछलियों के ऊपर मुकदमा दायर कर उनको ऐसे जेल में डाल दिया जायेगा जहाँ उन्हें हर प्रकार की सुख सुविधा प्रदान की जाएगी. जब कि कुछ लोगों का मानना था कि अगर जीप घोटाले के आरोपी वी के कृष्णमेनन को रक्षा मंत्री न हीं बनाया जाता, प्रताप सिंह कै रों को क्लीन चिट नहीं दी जाती और नागरवाला कांड की सच्चाई जनत ा के बीच आ जाती तथा असली गु नहगारों का पता चल जाता तो शायद फिर कोई प्रभावशाली आदमी घोटा ला करने से डरता, लेकिन ऐसा नही ं हुआ. नतीजतन, इस देश को जीप स े लेकर 2-जी स्पेक्ट्रम तक सै कड़ों घोटाले सहने पड़े. और न जा ने कब तक यह सब सहना पड़ेगा.

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