डॉ. एजाज़ अहमद (बी. यू. एम्. एस, पुणे) |
एडिस एजीप्टि एक छोटा काले रंग का मच्छर है जिस पर सफेद पट्टियां होती हैं और यह लगभग 5 मि.मी. आकार का होता है, यह दिन में काटता है और यह कई बार काटने के साथ घरेलू तथा घर के आस पास के स्थानों में मनुष्यों के ऊपर अपने भोजन के लिए निर्भर है। ![]() डेंगू के लक्षण
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डेंगू बुखार एक संक्रामक बुखार हैं जो क्यूलिक्स नामक मच्छरों के द्वारा एक रोगी से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करके रोग को पहुंचाता है। इस तरह का बुखार होने पर रोगी को भूख नहीं लगती है, रोगी को हर समय बुखार 103 से 105 डिग्री तक बना रहता है। एक सप्ताह तक रोगी को पसीना, दस्त, नकसीर (नाक से खून आना) आने लगती है। अगर यह बुखार ज्यादा बढ़ जाता है तो रोगी के कान में दर्द और सूजन तथा फेफड़ों में सूजन आ जाती है। . डेंगू बुखार में रोगी के पूरे शरीर की हडि्डयों में ऐसा दर्द होता है जैसे कि सभी हडि्डयां टूट गई हों।इसीलिए इस बुखार को 'हड्डी तोड़ बुखार' नाम भी दिया गया है। अगर इसका सही उपचार नहीं हुआ तो यह बुखार (1) डेंगू हेमोरेजिक फीवर, (2) डेंगू शॉक सिंड्रोम में बदल जाता है, जिससे मरीज की जान भी जा सकती है।
यह एक वायरल बुखार है, जो 4 प्रकार के डेंगू वायरस (डी-1, डी-2, डी-3, डी-4) से होता है। यह वायरस दिन में काटने वाले दो प्रकार के मच्छरों से फैलता है।यह एक वायरल बुखार है, जो 4 प्रकार के डेंगू वायरस (डी-1, डी-2, डी-3, डी-4) से होता है। यह वायरस दिन में काटने वाले दो प्रकार के मच्छरों से फैलता है।
ये मच्छर एडिज इजिप्टी तथा एडिज एल्बोपेक्टस के नाम से जाने जाते हैं। यह बुखार सिर्फ मच्छरों से फैलता है। मरीज दूसरे स्वस्थ आदमी को यह बीमारी नहीं देता है। यह मच्छर साफ, इकट्ठे पानी में पनपते हैं, जैसे घर के बाहर पानी की टंकियाँ या जानवरों के पीने की हौद, कूलर में इकट्ठा पानी, पानी के ड्रम, पुराने ट्यूब या टायरों में इकट्ठा पानी, गमलों में इकट्ठा पानी, फूटे मटके में इकट्ठा पानी आदि। इसके विपरीत मलेरिया का मच्छर गंदे पानी में पनपता है।
कारण व प्रसार
डेंगू के वायरस संक्रमित मादा एडिस एजीप्टिमच्छर के काटने से फैलता है। जब एक मादा मच्छर अपना भोजन पाने के लिए संक्रमित व्यक्ति को काटती है तो उस व्यक्ति के खून में दौड़ने वाले वायरस भी साथ में लिए जाते हैं। जब एक बार मच्छर संक्रमित हो जाता है तो यह पूरे जीवन संक्रमित ही बना रहता है। तब वायरस मादा मच्छर के विभिन्न अंगों में बढ़ता है। लगभग 8 से 10 दिनों बाद यह वायरस स्वीस्थ व्याक्ति में जाने के लिए तैयार हो जाता है। जब यह संक्रमित वाहक (कीट) एक स्वास्थ व्याक्ति को काटता है तो रोग के वायरस भी अगले व्यजक्ति में पहुंच जाते हैं। उस व्यतक्ति में वायरस के प्रवेश के बाद उसके खून में वायरसों की संख्याय बढ़नी शुरू हो जाती है। ये लक्षण कब प्रकट होते हैं जब वायरस पर्याप्त संख्याय में बहुगुणित हो चुका है। यह वायरस के संक्रमण के बाद लगभग 4 से 6 दिन (औसतन) बाद होता है। इस प्रकार डेंगू बुखार समुदाय में फैलता जाता है मच्छर को “वेक्टर” (vector) कहते हैं। और इस प्रकार से फैलनेवाले बीमारी को “वेक्टर बोर्न डिसईज़” (vector borne disease) कहते हैं।
डेंगू वाहक एडिस एजीप्टि
डेंगू सभी मच्छर से नहीं फैलता है। यह केवल कुछ जाति के मच्छर से फैलता है। एक प्रकार का मच्छर, जिसका नाम है, “एडिस एजिपटाई” (Aedes aegypti) इस बीमारी का संक्रमण कर सकता है।
एडिस एजीप्टि एक छोटा काले रंग का मच्छर है जिस पर सफेद पट्टियां होती हैं और यह लगभग 5 मि.मी. आकार का होता है, यह दिन में काटता है और यह कई बार काटने के साथ घरेलू तथा घर के आस पास के स्थानों में मनुष्यों के ऊपर अपने भोजन के लिए निर्भर है। भारत के अधिकांश राज्यों में एडिस एजीप्टि मच्छर एक प्रमुख वाहक है जो अलग अलग क्षेत्रों में डेंगू को फैलाता है। केरल राज्य में एडिस एलबो फीक्टस रबर के पौध रोपण वाले क्षेत्रों में लेटेक्स जमा करने के लिए प्रयुक्त पात्रों में जमा हुए पानी में तेजी से प्रजनन करता है और यहां रोग के फैलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक एडिस एजीप्टि मच्छर का जीवन चक्र अन्य मच्छरों के पेटर्न के अनुसार ही होता है और इसमें चार चरण अर्थात अण्डे, लारवा, प्यूपा और वयस्क होते हैं। पनडुब्बी के आकार के अण्डे पानी के छोटे पात्रों में दिए जाते हैं। पहली अवस्था में लारवा (भोजन करने की अवस्था) पानी में संपर्क के 24 घण्टे के अंदर उत्पन्न होते हैं। लारवा की चारों अवस्थाओं में लगभग 5 से 6 दिन का समय लगता है। चौथी अवस्था के लारवा के बाद कोमा के आकार के प्यूपा बनते हैं, जिसमें भोजन नहीं किया जाता है। इसके बाद वयस्क अवस्था आती है। अनुकूल परिस्थितियों में जीवन चक्र 7 - 10 दिनों में पूरा हो जाता है। मादा मच्छर तापमान और नमी की अनुकूल परिस्थितियों में 3 सप्ताह तक जीवित रह सकती हैं।
डेंगू के लक्षण :
डेंगू बुखार होने पर रोगी को अचानक ठण्ड के साथ खांसी व जुखाम के तेज बुखार हो जाता है.
रोगी के शरीर में तेज दर्द होकर हडि्डयों में पीड़ा होती हैं।
आंख के पिछले भाग में , रोगी के सिर के अगले हिस्से में व रोगी की मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होता है,
रोगी को भूख कम लगती है और उसके मुंह का स्वाद खराब हो जाता है,
रोगी की छाती पर खसरे के जैसे दाने निकल आते हैं, इसके अलावा जी मिचलाना, उल्टी होना, रोशनी से चिड़चिड़ाहट होना आदि लक्षण पाए जाते हैं।
कभी-कभी डेंगू बुखार में खून भी आने लगता है, जिसे हीमोरैजिक रक्तस्राव कहते हैं। हीमोरैजिक रक्तस्राव के समय के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं- लगातार पेट में तेज दर्द रहना, त्वचा ठंड़ी, पीली व चिपचिपी होना, रोगी के चेहरे और हाथ-पैरों पर लाल दाने हो जाते हैं। हीमोरैजिकडेंगू होने पर शरीर के अन्दरूनी अंगों से खून आने लगता है। नाक, मुंह व मल के रास्ते खून आता है जिससे कई बार रोगी बेहोश हो जाता है। खून के बिना या खून के साथ बार-बार उल्टी, नींद के साथ व्याकुलता, लगातार चिल्लाना, अधिक प्यास का लगना या मुंह का बार-बार सूखना आदि लक्षण पैदा हो जाते हैं। हीमोरैजिक डेंगूअधिक खतरनाक होता हैं और डेंगू बुखार साधारण बुखार से काफी मिलता-जुलता होता है।
इलाज :
२. अधिक से अधिक पानी, नारियल पानी और फलों का रस पीना चाहिए.
3. डेंगू बुखार से पीडित व्येक्ति का तापमान 39 डिग्री सेलसियस से कम बनाए रखने के लिए केवल पेरासिटामॉल गोलियां दी जानी चाहिए।
4. शरीर के तापमान को कम करने के लिए ठंडे गीले कपड़े से शरीर को पोंछना भी मददगार होता है।
५. इलाज के लिए कई लोगों द्वारा आम तौर पर ली जाने वाली एस्पी्रिन या एंटी इंफ्लेमेटरी दवाओं का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। ऐसी दवाओं के उपयोग से खून बहने की घटना हो सकती है।
६. रोगियों को आराम करने, ढेर सारा तरल पदार्थ पीने तथा डॉक्टर की राय लेने की सलाह दी जानी चाहिए। शरीर में तरल का उचित संतुलन बनाकर डीएचएफ का प्रबंधन किया जा सकता है।
७. डेंगू से खून में प्ला ज्मान की कमी होती है, यदि इसका प्रबंधन न किया जाए तो यह घातक सिद्ध हो सकता है।
बचाव व सावधानियां:
2. कोई भी बरतन में खुले में पानी न जमने दें। बतरन को खाली करके रखें या उलट कर रखें। अगर आप किसी बरतन, बाल्टी, ड्रम, इत्यादि में पानी जमा करके रखते हैं, तो उसे ढक कर रखें। अगर किसी चीज में पानी रखते हैं, तो उसे साबुन और पानी से धो लिया करें, कि उस में से मच्छर का अंडा को हटाया जा सके।
3. किसी भी खुले जगह में, जैसे खड्डे में, गमला में, कचडा़ में पानी न जमने दें। हो सके तो उसे मिट्टी से भर कर रखें।
4. खिड़की और दरवाजे में जाली लगा कर रखना चाहिये। दोपहर के बाद, खिड़की और दरवाजे को बंद रखें,
5. बरसात के मौसम में और चौकसी बरतें।
6. सफेद या हल्के रंगा का पूरे बांह वाले कपडे़ पहने, जिससे कि आप अपने शरीर को पूरे तरह से ढक सकें।
7. जहां अधिक मच्छर है, वहां रात को मच्छरदानी का उपयोग करें। कभी-कभार मच्छर मारने वाले दवा उन जगहों पर मच्छर पर असर नहीं करता है।
8. अपने नगर निगम द्वारा मच्छर मारने वाला दवा छिड़कायें।
घरेलु उपचार
सर्पगंधा के कन्द (फल) का चूर्ण, कालीमिर्च, डिकामाली घोड़बच और चिरायता के चूर्ण को एकसाथ मिलाने से बनी मिश्रित औषधि में से 1 से 2 ग्राम को सुबह और शाम लेने से डेंगू के बुखार में लाभ मिलता है।
डेंगू बुखार तेज होने पर रोगी के माथे पर ठंड़े पानी की पट्टियां रखी जा सकती हैं। हीमोरैजिक डेंगू होने पर रोगी के खून में प्लेटीनेट्स की संख्या बढ़ाने के लिए अतिरिक्त मात्रा देने की आवश्यकता होती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि हीमोरैजिक डेंगू होने पर रोगी को दर्द दूर करने वाली दवा नहीं देनी चाहिए क्योंकि कई बार इन दर्द निवारक दवाओं से रोगी में खून के बहने का डर बना रहता है। इस दौरान शरीर में पानी की मात्रा और रक्तचाप को नियंत्रित करना भी जरूरी होता है।
5 से 10 बूंद चंदन के तेल को बतासे पर डालकर सुबह और शाम लेकर ऊपर से पानी से पीने से बुखार कम हो जाता है।
कर्पूरासव 5 से 10 बूंद बतासे पर डालकर सुबह और शाम लेने से खून की नसें फैलती हैं, पसीना आकर बुखार, दाह (जलन) और बेचैनी कम होते जाते हैं।



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