रायबरेली का जीआइसी मैदान वैसे तो बड़ी चुनावी रैलियों का गवाह रहा है लेकिन 21 अप्रैल को पहली बार यहां से कांग्रेसी वर्चस्व को आंख दिखाई गई. कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली भगवा बैनर और पोस्टर से पटा था लेकिन जीआइसी मैदान पर आयोजित भारतीय जनता पार्टी की "परिवर्तन संकल्प रैली'' के मुख्य मंच के बैनर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चित्र नदारद था.कभी सोनिया गांधी के बेहद करीबी कहे जाने वाले विधान परिषद सदस्य दिनेश प्रताप सिंह (रायबरेली शहर में जिनका घर पंचवटी कहलाता है) के परिवार को हाथ का साथ छोड़ कमल थामना था, इसी ने कांग्रेसी गढ़ में भाजपा रैली की वजह तैयार की थी. रैली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत भाजपा सरकार के कई मंत्री मौजूद थे.
रैली से पहले अमित शाह ने विधान परिषद में कांग्रेस दल के नेता दिनेश प्रताप सिंह, उनके भाई जिला पंचायत अध्यक्ष अवधेश सिंह समेत कई कांग्रेसी नेताओं को भाजपा में शामिल कराया. हालांकि सदस्यता जाने के डर से दिनेश के छोटे भाई और रायबरेली के हरचंदपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक राकेश सिंह ने भाजपा की सदस्यता नहीं ली. बाद में अमित शाह ने रैली से रायबरेली में गांधी परिवार के खिलाफ जंग का आगाज कर दिया.
अपने आधे घंटे के संबोधन में अमित शाह ने कई बार पंचवटी परिवार के सदस्यों का जिक्र करके यह संकेत दिया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली में दिनेश प्रताप सिंह की बड़ी भूमिका होगी. भगवा पार्टी के एक बड़े नेता दिनेश प्रताप सिंह को सोनिया गांधी के खिलाफ रायबरेली लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाने की पुरजोर वकालत कर रहे हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सोनिया गांधी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के वकील अजय अग्रवाल को मैदान में उतारा था. चुनाव में सोनिया गांधी को साढ़े पांच लाख वोट मिले जबकि अजय महज पौने दो लाख वोटों पर ही सिमट गए थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में रायबरेली लोकसभा सीट में आने वाली पांच विधानसभा सीटों में कांग्रेस केवल रायबरेली सदर और हरचंदपुर ही जीत सकी थी.
भाजपा सोनिया गांधी के खिलाफ अगला लोकसभा चुनाव काफी मजबूती से लडऩा चाह रही है. इसीलिए भाजपा कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को तोड़कर रायबेरली में सोनिया गांधी को कमजोर करना चाहती है. भाजपा का साथ मिला तो श्परिवर्तन संकल्प रैली्य में दिनेश प्रताप सिंह ने कांग्रेस से अपने 15 वर्षों के रिश्ते को जमकर धोया. कांग्रेस सरकार के दौरान हुए रायबरेली के विकास को निशाने पर लेते हुए दिनेश प्रताप सिंह बोले, "फुरसतगंज में राष्ट्रीय उड़ान अकादमी की स्थापना हुई लेकिन पिछले 30 वर्षों में रायबरेली का एक भी युवा यहां से पायलट नहीं बन सका.'' हालांकि भाजपा की घेरेबंदी को तोडऩे के लिए खुद सोनिया गांधी मोर्चा संभाल चुकी हैं. भाजपा की रैली से तीन दिन पहले 18 अप्रैल को सोनिया गांधी डेढ़ वर्ष बाद अपने संसदीय क्षेत्र रायबेली पहुंचीं और 70 करोड़ रु. से अधिक की योजनाओं की शुरुआत की. विधान परिषद सदस्य दिनेश प्रताप सिंह के कांग्रेस छोडऩे के बाद सोनिया गांधी ने कांग्रेस के युवा विधान परिषद सदस्य दिनेश सिंह और रायबरेली सदर से युवा विधायक अदिति सिंह को आगे किया है.रायबरेली में शहर पीएसी के सामने बने ऊंचाहार से समाजवादी पार्टी (सपा) विधायक मनोज पांडेय के नवनिर्मित आवास "नीलम मैंशन'' पहुंच कर सोनिया गांधी ने नए समीकरणों के बीज बो दिए. सपा में हाशिए पर चल रहे मनोज पांडेय हालांकि सोनिया के अपने आवास पर आने को महज एक शिष्टाचार बताते हैं लेकिन इस मुलाकात में आने वाले दिनों की एक बड़ी राजनैतिक उठा-पटक के बीज छिपे हुए हैं.बहरहाल, रायबरेली की धरती को पंजे की पकड़ से मुक्त कराकर कमल खिलाने की रणनीति इस बात से तय होगी कि भगवा दल रायबरेली और गांधी परिवार के बीच बने भावनात्मक जुड़ाव की काट कैसे निकाल पाता है?
रैली से पहले अमित शाह ने विधान परिषद में कांग्रेस दल के नेता दिनेश प्रताप सिंह, उनके भाई जिला पंचायत अध्यक्ष अवधेश सिंह समेत कई कांग्रेसी नेताओं को भाजपा में शामिल कराया. हालांकि सदस्यता जाने के डर से दिनेश के छोटे भाई और रायबरेली के हरचंदपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक राकेश सिंह ने भाजपा की सदस्यता नहीं ली. बाद में अमित शाह ने रैली से रायबरेली में गांधी परिवार के खिलाफ जंग का आगाज कर दिया.
अपने आधे घंटे के संबोधन में अमित शाह ने कई बार पंचवटी परिवार के सदस्यों का जिक्र करके यह संकेत दिया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली में दिनेश प्रताप सिंह की बड़ी भूमिका होगी. भगवा पार्टी के एक बड़े नेता दिनेश प्रताप सिंह को सोनिया गांधी के खिलाफ रायबरेली लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाने की पुरजोर वकालत कर रहे हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सोनिया गांधी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के वकील अजय अग्रवाल को मैदान में उतारा था. चुनाव में सोनिया गांधी को साढ़े पांच लाख वोट मिले जबकि अजय महज पौने दो लाख वोटों पर ही सिमट गए थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में रायबरेली लोकसभा सीट में आने वाली पांच विधानसभा सीटों में कांग्रेस केवल रायबरेली सदर और हरचंदपुर ही जीत सकी थी.
भाजपा सोनिया गांधी के खिलाफ अगला लोकसभा चुनाव काफी मजबूती से लडऩा चाह रही है. इसीलिए भाजपा कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को तोड़कर रायबेरली में सोनिया गांधी को कमजोर करना चाहती है. भाजपा का साथ मिला तो श्परिवर्तन संकल्प रैली्य में दिनेश प्रताप सिंह ने कांग्रेस से अपने 15 वर्षों के रिश्ते को जमकर धोया. कांग्रेस सरकार के दौरान हुए रायबरेली के विकास को निशाने पर लेते हुए दिनेश प्रताप सिंह बोले, "फुरसतगंज में राष्ट्रीय उड़ान अकादमी की स्थापना हुई लेकिन पिछले 30 वर्षों में रायबरेली का एक भी युवा यहां से पायलट नहीं बन सका.'' हालांकि भाजपा की घेरेबंदी को तोडऩे के लिए खुद सोनिया गांधी मोर्चा संभाल चुकी हैं. भाजपा की रैली से तीन दिन पहले 18 अप्रैल को सोनिया गांधी डेढ़ वर्ष बाद अपने संसदीय क्षेत्र रायबेली पहुंचीं और 70 करोड़ रु. से अधिक की योजनाओं की शुरुआत की. विधान परिषद सदस्य दिनेश प्रताप सिंह के कांग्रेस छोडऩे के बाद सोनिया गांधी ने कांग्रेस के युवा विधान परिषद सदस्य दिनेश सिंह और रायबरेली सदर से युवा विधायक अदिति सिंह को आगे किया है.रायबरेली में शहर पीएसी के सामने बने ऊंचाहार से समाजवादी पार्टी (सपा) विधायक मनोज पांडेय के नवनिर्मित आवास "नीलम मैंशन'' पहुंच कर सोनिया गांधी ने नए समीकरणों के बीज बो दिए. सपा में हाशिए पर चल रहे मनोज पांडेय हालांकि सोनिया के अपने आवास पर आने को महज एक शिष्टाचार बताते हैं लेकिन इस मुलाकात में आने वाले दिनों की एक बड़ी राजनैतिक उठा-पटक के बीज छिपे हुए हैं.बहरहाल, रायबरेली की धरती को पंजे की पकड़ से मुक्त कराकर कमल खिलाने की रणनीति इस बात से तय होगी कि भगवा दल रायबरेली और गांधी परिवार के बीच बने भावनात्मक जुड़ाव की काट कैसे निकाल पाता है?

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